हालांकि शबनम की फांसी की तारीख अभी तय नहीं है, लेकिन राष्ट्रपति द्वारा शबनम की दया याचिका खारिज किये जाने के बाद जेल प्रशासन अपनी तैयारियों में जुट गया है। हालांकि यह भी आशंका जतायी जा रही है कि शबनम की फांसी टल सकती है, क्योंकि उसके प्रेमी सलीम की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कहा जा रहा है कि शबनम इसे आधाार बनाकर हाईकोर्ट की शरण ले सकती है। सुप्रीम कोर्ट शबनम की पुनर्विचार याचिका तो खारिज कर चुका है, लेकिन सलीम की पुनर्विचार याचिका अब भी उच्चतम न्यायालय में लंबित है।
अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव की शबनम का आठवीं पास सलीम नाम के युवक से प्रेम प्रसंग था। एमए पास शबनम का परिवार उन दोनों की शादी के लिये तैयार नहीं था। इसके बाद दोनों ने खूनी साजिश केा अंजाम दिया और 15 अप्रैल 2008 को शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता-पिता, भाई-बहन समेत सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
कब बना था मथुरा फांसी घर
मथुरा जेल में फांसी घर अंग्रेजी राज में बना था। यह देश में यह अकेला फांसी घर है जहां सिर्फ महिलाओं की फांसी की व्यवस्था है। इसे अंग्रेजों ने आज से 150 साल पहले यानि 1870 में बनवाया था। इसका परिसर करीब 400 मीटर क्षेत्रफल का है। चूंकि आजादी के बाद से भारत में किसी महिला को फांसी नहीं दी गई इसलिये यह उसी तरह है जैसा अंग्रेजों के जमाने में था। इसकी चहारदीवारें ऊंची हैं और बीच में फांसी पर लटकाने के लिये तख्त है। लोहे के एंगल में तीन हुक लगे हुए हैं।
पवन जल्लाद ने भी देखा महिला फांसी घर
शबनम की फांसी की संभावनाओं को देखते हुए प्रदेश के एकलौतो पवन जल्लाद ने भी मथुरा जेल स्थित महिला फांसी घर का निरीक्षण किया है। उसने तख्ते और लीवर में कुछ कमियां प्रशासन को बतायीं, जिसको समय रहते ठीक किया जा रहा है। फांसी के लिये बिहार के बक्सर से रस्सी मंगाई जा रही है। मथुरा जेलर के मुताबिक अगर किसी को भी फांसी देने से पहले उसे दूसरे कैदियों से अलग तनहाई में रखे जाने का नियम है।