जानें क्या है पूरा मामला
उत्तराखंड में साल 2003 की विज्ञप्ति के आधार पर 18 विषयों के लिए हुई परीक्षा में चुने गए प्रवक्ताओं को अक्तूबर 2005 से लेकर नवंबर 2006 तक नियुक्तियां दी गई थीं। लोक सेवा आयोग ने तब के नियमों के अनुसार लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के अंकों के आधार पर बनी मेरिट के तहत वरिष्ठता तय की थी। उस वरिष्ठता सूची को पांच जनवरी 2009 को शासन को सौंप दिया गया। लेकिन शिक्षा विभाग ने आयोग की वरिष्ठता सूची पर असहमति जताते हुए 29 मार्च 2012 को नई सूची लागू कर दी। विभाग ने जिस क्रम में आयोग से जिस जिस विषय के प्रवक्ता चयनित होकर मिलते गए उसी क्रम में वरिष्ठता तय कर दी। ये भी पढ़ें:-
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लोक सेवा आयोग की वरिष्ठता सूची में नंदन सिंह बिष्ट तीसरे नंबर पर थे। जबकि शिक्षा विभाग की सूची में खिसक कर 892 वें नंबर पर आ गए थे। विभाग में प्रत्यावेदन देने पर जब सुनवाई न हुई तो वर्ष 2017 में बिष्ट ने हाईकोर्ट में केस दायर किया। हाईकोर्ट के 22 सितंबर 2017 के आदेश के आधार पर तत्कालीन शिक्षा निदेशक आरके कुंवर ने मामले की सुनवाई करते हुए 13 जुलाई 2018 को बिष्ट के प्रत्यावेदन को खारिज कर दिया। बिष्ट के दोबारा अपील करने पर हाईकोर्ट ने उन्हें लोक सेवा अभिकरण जाने को कहा। लंबी सुनवाई के बाद अभिकरण ने इस मामले में बिष्ट के पक्ष को सही पाया है। अभिकरण के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह (जे) और उपाध्यक्ष एएस रावत (ए) की बेंच ने शिक्षा विभाग द्वारा जारी वरिष्ठता सूची को निरस्त करते हुए लोक सेवा आयेाग के मानकों के अनुसार नई सूची तैयार करने के आदेश दिए हैं।