भाजपा के सिर्फ 21 एमएलसी
उप्र की विधान परिषद यानी उच्च सदन में अभी समाजवादी पार्टी के 55 विधायक यानी एमएलसी हैं। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के 21 और बसपा के 8 एमएलसी हैं। जबकि कांग्रेस के दो सदस्य हैं। इनमें से एक दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। कांग्रेस ने इनकी सदस्यता रद करने का आग्रह किया है लेकिन विधान परिषद सभापति ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है।
सपा विधायकों को तोडऩे की वजह
विधान सभा में भले ही भाजपा का बहुमत हो लेकिन विधानपरिषद में सरकार का बहुमत नहीं है। यही वजह है कि योगी सरकार के तमाम विधेयक पारित नहीं हो पाते हैं। सदन में हो हल्ला भी खूब होता है। हालात यह हो जाती है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब विधान परिषद में पहुंचते हैं तब उनके बचाव में कम से कम तीन-चार मंत्री साथ होते हैं ताकि योगी सवालों का ठीक से जवाब दे सकें। सरकार के महत्वपूर्ण विधेयक न लटकेें और भाजपा सरकार का विधान परिषद में भी बहुमत हो जाए इसलिए सपा के एमएलसी को तोडऩे की नीति बनायी गयी है। सपा के 55 विधायकों में से कम से कम 8 विधायकों को तोड़ लेने पर भाजपा के विधायकों की संख्या 29 हो जाएगी। इसके साथ ही भाजपा शिक्षक दल, निर्दलीय, असंबद्व और अपना दल सोनेलाल के विधायकों के मतों को मिलाकर बहुमत के करीब पहुंंच जाएगी।
इधर इस्तीफा, उधर चुनाव
भाजपा के रणनीतिकारों ने जो योजना बनायी है उसके मुताबिक कम से कम 8 एमएलसी पहले इस्तीफा देंगे। इनके इस्तीफा देते ही विधान परिषद के चुनाव की घोषणा कर दी जाएगी। इस तरह एक-एक कर सपाइयों को भाजपा का एमएलसी चुन लिया जाएगा। जिन एमएलसी पर भाजपा की नजर है उनमें से एक ने शिक्षक निर्वाचन के लिए भाजपा से टिकट मांगा है। इनका कार्यकाल अगले साल अप्रेल तक है। वे भाजपा के लिए इस्तीफा देने को तैयार हैं। एक एमएलसी खुलकर सपा के पूर्व राज्यसभा सांसद नीरज शेखर के साथ हैं वे भी पार्टी छोडऩे को तैयार बैठे हैं। इसी तरह कम से कम छह और सपा एमएलसी हैं जो अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं। ये सब भी इस्तीफा देंगे।