script300 चीनी सैनिकों से अकेले लड़ता रहा उत्तराखंड का ये राइफल मैन, अंत में खुद को मार ली गोली | Rifleman saheed jaswant singh rawat story in hindi | Patrika News
लखनऊ

300 चीनी सैनिकों से अकेले लड़ता रहा उत्तराखंड का ये राइफल मैन, अंत में खुद को मार ली गोली

300 चीनी सैनिकों से अकेले लड़ता रहा उत्तराखंड का ये राइफल मैन, अंत में खुद को मार ली गोली

लखनऊJul 07, 2017 / 01:40 pm

Ruchi Sharma

jaswant singh

jaswant singh

लखनऊ. शरीर तो मिट जाता है पर जज्बा हमेशा जिंदा रहता है। यह कहावत 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले शहीद महावीर चक्र विजेता राइफल मैन जसवंत सिंह रावत पर सटीक बैठती है। इसलिए वह आज भी अमर हैं। ये कहानी है जब उत्तर प्रदेश अौर उत्तराखंड एक हुआ करते थे तब गढ़वाल के रहने वाले वीर योद्दा राइफल मैन जसवंत सिंह ने अकेले ही चाइना के तीन सौ सैनिकों को मार गिराया था।

19 वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हुए थे

पौड़ी जिले के ग्राम बांडयू में जसवंत सिंह 19 वर्ष की आयु में 19 अगस्त 1960 को सेना में भर्ती हुए। 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध लड़ा। 17 नवंबर 1962 को चौथी बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए तैनात हुई। 

jaswant singh


ये कहानी है जब 1962 में चीन ने भारत को करारी शिकस्त दी थी। उस युद्ध में हमारे देश के कई जांबाजोंं ने अपने लहू से गौरवगाथा लिखी थी। उनमें से एक शहीद वीर योद्दा जसवंत सिंह जिसका नाम अाने पर न केवल भारतवासी बल्कि चीनी भी सम्मान से सिर झुका देते हैं। वो मोर्चे पर लड़े अौर एेसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई।


अकेले लड़ते रहे मैदान में, बाद में खुद गोली मार ली

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो एेतिहासिक जंग लड़ी थी। वो 1962 की जंग का अाखिरी दौर था। चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी। लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया। पूरी बटालियन लौट गई लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे। 



jaswant singh


बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की। बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं। उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा। चीनी परेशान हो गए और तीन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं। तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया। इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए। बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली। भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।


jaswant singh


चीनी सैनिक सिर काटकर ले गए थे अपने देश

चीनी सैनितों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो व हैरान रह गए। चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए। 20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना अौर सम्मान स्वरूप न केवल उनका कटा हुए सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ती भी भेंट की।

चीनी भी स्मारक में झुकाते है सिर


जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर में चीन की अोर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है। उधर से गुजरने वाला हर जनरल अौर जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है। स्थानीय नागरिक अौर नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं।


jaswant singh


आज भी मिलता है प्रमोशन

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोड जूते पॉलिश किए जाते हैं। उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है अौर वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं। सेना के रजिस्टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है अौर उन्हे प्रमोशन भी मिलते हैं। अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं। इनका नाम है- कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत। 

आज भी करते हैं ड्यूटी

महावीर चक्र से सम्मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है। एेसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है।

Hindi News / Lucknow / 300 चीनी सैनिकों से अकेले लड़ता रहा उत्तराखंड का ये राइफल मैन, अंत में खुद को मार ली गोली

ट्रेंडिंग वीडियो