हरिओम द्विवेदी लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उंगलियों पर गिनने को ही दिन बचे हैं। लेकिन गठबंधन पर अनिश्चितता बरकरार है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी अखिलेश-मुलायम खेमों में बंटती दिख रही है। सपा-कांग्रेस में गठबंधन पर बरकरार सस्पेंस के बीच बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा जोरोंएं पर है। फिलहाल कांग्रेस वेट एंड वाच की स्थिति में है और अपने नफा-नुकसान के आकलन में जुटी है। उधर, आरपीआई प्रमुख रामदास अठावले भी भारतीय जनता पार्टी पर गठबंधन का दबाव बना रहे हैं तो रालोद प्रमुख अजित सिंह भाजपा को हराने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। चर्चा ओवैसी की एआईएमआईएम और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन की भी है। छोटे दल भी एक साथ बड़ा गठबंधन की फिराक में हैं। फिलहाल सभी की नजरें समाजवादी पार्टी के संग्राम के परिणाम पर टिकी हैं। ये भी पढ़िए- माया से डरे मुलायम! कहा- सदन में मायावती के बाजू में रामगोपाल को न बैठने दिया जाये राजनीतिक जानकारों की मानें तो सत्ता में आने के लिए कांग्रेस को तो गठबंधन की जरूरत है ही, पर सपा और बसपा भी यही मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में भाजपा की मजबूत चुनौती का जवाब गठबंधन से दिया जा सकता है। बसपा और सपा तो साथ आने से रहे, ऐसे में दोनों कांग्रेस से गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। सपा-कांग्रेस में गठबंधन पर असमंस अखिलेश गठबंधन के सहारे 300 सीटें जीतने का दावा कई बार कर चुके हैं। लेकिन मुलायम गठबंधन के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। समाजवादी पार्टी में चल रहे इस अनिश्चितता के दौर की वजह से ही कांग्रेस ने प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी से भी गठबंधन के सभी रास्ते खुले रखे हैं। जल्द ही अखिलेश और राहुल गांधी की मुलाकात की बात कही जा रही है। अटकलें प्रियंका और डिंपल यादव के भी मिलने की हैं। माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद गठबंधन की स्थिति क्लियर हो सकती है। ये भी पढ़िए- सपा संग्राम : टूट की ओर सियासी रिश्ते पर बाप-बेटे में प्यार बरकरार सपा पर बसपा को तरजीह दे सकती है कांग्रेस सूत्रों की मानें तो मायावती और कांग्रेस के बीच भी गठबंधन पर बातचीत जारी है। चर्चा यह भी है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस से 2017 में साथ देने के बदले 2019 में साथ देने का वादा किया है। सात ही उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को चेताते हुए कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने सपा का साथ दिया तो भाजपा को फायदा होगा, जो 2019 को देखते हुए कांग्रेस बिल्कुल नहीं चाहेगी। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर मायावती और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात हुई है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व सपा से ज्यादा बसपा को तरजीह देने के पक्ष में है। क्योंकि सपा के साथ कांग्रेस के पिछले अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस नेतृत्व को सत्ता विरोधी लहर का डर भी सता रहा है। अठावले ने भाजपा पर बनाया गठबंधन का दबाव केंद्रीय मंत्री और आरपीआई प्रमुख रामदास अठावले गठबंधन को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। सोमवार को लखनऊ में प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी और भाजपा के बीच गठबंधन की चर्चा चल रही है। जल्द ही कोई फैसला होगा। उनका मानना है कि अगर उनमें बसपा के परंपरागत दलित वोटरों को काटने की क्षमता है। लेकिन गठबंधन न होने की सूरत में वह कहते हैं कि इस स्थिति में उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में 200-250 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ये भी पढ़िए- बसपा की तीसरी लिस्ट में झलकी माया की ‘खास’ रणनीति ओवैसी से गठबंधन कर सकती हैं मायावती मुलायम कुनबे में मचे सियासी घमासान के बीच मायावती मुस्लिम वोटरों को अपने खेमे में लाना चाहती हैं। वह अपने हर संबोधन में भाजपा पर निशाना तो साधती ही हैं, साथ ही सपा को कमजोर बताकर मुस्लिमों से बसपा को वोट की अपील कर रही हैं। वह इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे यूपी की सत्ता हासिल करना चाहती हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दिया है। अपनी रणनीति में वह सफल होती भी दिख रही थीं, लेकिन सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन की अटकलों के बीच सपा फिर मुस्लिम वोटर्स की पहली पसंद हो सकती है। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में एआईएमआईएम चीफ ओवैसी ने कहा था कि हम बसपा से गठबंधन चाहते हैं, अब फैसला बसपा को ही लेना है। भाजपा को हराने को किसी भी हद तक जाएंगे रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह किसी भी कीमत पर भाजपा को यूपी में नहीं देखना चाहते हैं। उनका कहना है कि वह उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के कुछ भी करने को तैयार हैं। उनका लक्ष्य किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकना है। ये भी पढ़िए- पार्टी के सर्वेसर्वा बने अखिलेश, इन वजहों ने उड़ा रखी है सीएम की नींद!