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UP Politics : राजनीतिक दोस्ती निभाने में हमेशा कमजोर साबित हुई हैं बसपा प्रमुख मायावती

UP Politics : बहुजन समाज पार्टी का कई दलों से है समझौते का रिकॉर्ड, बसपा ने यूपी में जब-जब गठबंधन किया, उनके लिए संजीवनी ही साबित हुआ है, लेकिन बाहरी राज्यों में दाल नहीं गली

लखनऊJun 14, 2021 / 01:32 pm

Hariom Dwivedi

 Mayawati is weak to maintaining political friendship

UP Politics : राजनीतिक दोस्ती निभाने में हमेशा कमजोर साबित हुई हैं बसपा प्रमुख मायावती

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. UP Politics- बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती (Mayawati) ने अगले वर्ष होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Elections) से पहले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से गठबंधन (Alliance) का मास्टर स्ट्रोक खेला है। पहले भी मायावती को गठबंधन की राजनीति रास आती रही है, फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर बाहरी राज्यों की। बसपा का अन्य दलों से रहा है समझौतों का रिकॉर्ड रहा है। लेकिन, वह राजनीतिक दोस्ती निभाने के मामले में हमेशा फिसड्डी साबित हुई हैं। मतलब सियासी फायदे के लिए वह गठबंधन तोड़ने में गुरेज नहीं करतीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने चिर-प्रतिद्वंदी पार्टी सपा से गठबंधन किया था, लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली। खास बात यह है यूपी में बसपा ने जब-जब गठबंधन किया, उनके लिए संजीवनी ही साबित हुआ है, लेकिन बाहरी राज्यों में उनकी दाल नहीं गली।
बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) के लिए बाहरी राज्यों में गठबंधन भले ही सुखद नहीं रहा, लेकिन उत्तर प्रदेश में गठजोड़ की राजनीति ने ही उन्हें पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया। वर्ष 1993 में बसपा ने सपा (Samajwadi Party) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और वह पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन, 18 माह बाद गेस्ट हाउस कांड के चलते मायावती ने यह गठबंधन तोड़ दिया। वर्ष 1996 में कांग्रेस से मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ा तो बसपा के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ। वर्ष 2019 में बसपा ने सपा और रालोद संग मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें बसपा की सीटें शून्य से 10 तक पहुंच गई। लेकिन, खास बात यह है कि बसपा के साथ किसी भी दल का गठबंधन लंबा नहीं चला। खुद मायावती ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया।
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गठजोड़ से पूर्ण बहुमत तक
वर्ष 1991 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने अकेले दम पर विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav) लड़ा था। इसमें बसपा को 10.26 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी के 12 विधायक जीते। करीब दो वर्ष बाद बसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया। चुनावी नतीजों के बाद मायावती के रूप में पहली बार को दलित महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में सफल रही। हालांकि, कुछ दिनों मायावती ने यह गठबंधन तोड़ दिया। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा को कांग्रेस (Congress) से गठबंधन का फायदा मिला और न केवल पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़कर 27.73 फीसदी हो गया बल्कि 67 सीटें भी जीतने में सफल रही। लेकिन, कांग्रेस से भी दोस्ती लंबी न चल सकी। गठबंधन के जरिए राजनीति की उंचाइयों को छूते हुए बसपा 2017 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही।
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बाहरी राज्यों में नहीं चला गठबंधन का दांव
यूपी में भले ही बसपा के लिए गठबंधन की राजनीति फायदेमंद साबित हुई है, लेकिन बाहरी राज्यों में मायावती का गठबंधन दांव नहीं चला। बिहार के बीते विधानसभा चुनाव में मायावती ने उपेंद्र कुशवाहा, असदुद्दीन ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर (OM Prakash Rajbhar) के साथ मिलकर छह दलों का ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाया। बसपा के हिस्से में 80 सीटें आईं, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहें। छत्तीसगढ़ के बीते विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी संग मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी नतीजा सिफर रहा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी बसपा के गठबंधन की गाड़ी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। हरियाणा में भी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का साथ भी हाथी को नहीं दौड़ा सका।
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यूपी में छोटे दलों से गठबंधन कर सकती हैं मायावती
2022 के विधानसभा चुनाव (uttar pradesh assembly elections 2022) की तैयारियों में जुटी बीजेपी से लेकर सपा और अन्य दल गठबंधन की कवायद में जुटे हैं लेकिन, बसपा इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सूबे के कई छोटे-छोटे दल बसपा से गठबंधन करने को उत्सकु हैं। इनमें ओम प्रकाश राजभर की अगुआई वाला भागीदारी संकल्प मोर्चा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम प्रमुख हैं, लेकिन इन्हें अभी मायावती की ओर से हरी झंडी का इंतजार है।

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