गठजोड़ से पूर्ण बहुमत तक
वर्ष 1991 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने अकेले दम पर विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav) लड़ा था। इसमें बसपा को 10.26 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी के 12 विधायक जीते। करीब दो वर्ष बाद बसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया। चुनावी नतीजों के बाद मायावती के रूप में पहली बार को दलित महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में सफल रही। हालांकि, कुछ दिनों मायावती ने यह गठबंधन तोड़ दिया। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा को कांग्रेस (Congress) से गठबंधन का फायदा मिला और न केवल पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़कर 27.73 फीसदी हो गया बल्कि 67 सीटें भी जीतने में सफल रही। लेकिन, कांग्रेस से भी दोस्ती लंबी न चल सकी। गठबंधन के जरिए राजनीति की उंचाइयों को छूते हुए बसपा 2017 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही।
बाहरी राज्यों में नहीं चला गठबंधन का दांव
यूपी में भले ही बसपा के लिए गठबंधन की राजनीति फायदेमंद साबित हुई है, लेकिन बाहरी राज्यों में मायावती का गठबंधन दांव नहीं चला। बिहार के बीते विधानसभा चुनाव में मायावती ने उपेंद्र कुशवाहा, असदुद्दीन ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर (OM Prakash Rajbhar) के साथ मिलकर छह दलों का ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाया। बसपा के हिस्से में 80 सीटें आईं, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहें। छत्तीसगढ़ के बीते विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी संग मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी नतीजा सिफर रहा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी बसपा के गठबंधन की गाड़ी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। हरियाणा में भी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का साथ भी हाथी को नहीं दौड़ा सका।
यूपी में छोटे दलों से गठबंधन कर सकती हैं मायावती
2022 के विधानसभा चुनाव (uttar pradesh assembly elections 2022) की तैयारियों में जुटी बीजेपी से लेकर सपा और अन्य दल गठबंधन की कवायद में जुटे हैं लेकिन, बसपा इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सूबे के कई छोटे-छोटे दल बसपा से गठबंधन करने को उत्सकु हैं। इनमें ओम प्रकाश राजभर की अगुआई वाला भागीदारी संकल्प मोर्चा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम प्रमुख हैं, लेकिन इन्हें अभी मायावती की ओर से हरी झंडी का इंतजार है।