उप्र में पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े गए हैं। बावजूद इसके सियासी दलों ने पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव 2022 का सेमीफाइनल मानते हुए एड़ी चोटी का जोर लगाया। आरक्षण को लेकर पहले हाईकोर्ट और फिर कोविड काल में चुनाव स्थगित करने से लेकर मतगणना रोकने तक के लिए उच्चतम न्यायालय कानूनी लड़ाई लड़ी गयी। हर जगह सत्ताधारी बीजेपी ने जोरदार पैरवी की। तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों और कोरोना संक्रमण के बीच चुनाव हुए। और अंतत: 2 मई को ही नतीजे घोषित करने का निर्णय शीर्ष कोर्ट ने सुनाया।
हर दल ने झोंकी पूरी ताकत गांव की सरकार बनाने के लिए सत्ताधारी दल भाजपा ने तो पूरी ताकत झोंकी ही मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के अलावा यूपी में अपना दमखम आजमाने के लिए पहली बार आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव को मजबूती से लड़ा। आप ने सबसे पहले जिला पंचायत सदस्यों के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर बढ़त हासिल की। आप ने पश्चिम में किसान आंदोलन के जरिए पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की तो वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी गांव-गांव में चुनाव के जरिए अपनी पार्टी की पैठ को मजबूत करने की कवायद की।
आखिर क्यों महत्वपूर्ण है पंचायत चुनाव यूपी में कुल 58176 ग्राम पंचायतें हैं। यानी इतने ही ग्राम प्रधान चुने जाएंगे। 7 लाख 32 हजार 845 ग्राम पंचायत सदस्यों और 75,852 जिला क्षेत्र पंचायत सदस्यों का चुनाव भी हुआ है। 3,051 सदस्य क्षेत्र पंचायत के अलावा 826 ब्लाक प्रमुख चुने जाएंगे। बाद में 75 जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव होगा। हालांकि, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होगा। इस चुनाव में कुल 12 करोड़ 43 लाख से ज्यादा मतदाता थे। उप्र में जिला पंचायत अध्यक्ष की हैसियत एक विधायक से कहीं ज्यादा होती है। इसी तरह ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान भी पहले की तुलना में ज्यादा ताकतवर हैं। जनमत बनाने में इनकी बड़ी भूमिका होती है। इसीलिए हर पार्टी अपने-अपने ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष जिताना चाहती हैं।
विधानसभा चुनाव की तरह बनाया था वॉर रूम पंचायत के चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी ने तो बाकायदा लखनऊ में पार्टी दफ्तर में एक वॉर रूम बनाया था। पार्टी ने जिलेवार बैठकें कीं। मंत्रियों के साथ ग्राम चौपाल लगायीं। विधायक, सांसद भी गांव-गांव गए। समाजवादी पार्टी ने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश भरा। अखिलेश यादव खुद इन कार्यक्रमों में गए। आप पार्टी के यूपी प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने तो घोषणा की कि पंचायत चुनाव में जीते लोगों को ही पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाएगी। पंचायत चुनाव को लेकर बीएसपी प्रमुख मायावती भी पहली बार काफी संजीदा दिखीं। दिल्ली से लखनऊ आकर उन्होंने लगातार मंडल स्तर पर बैठकें कीं। सेक्टर प्रभारियों ने जिला पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए। 32 साल से यूपी की सत्ता से बाहर कांग्रेस ने पहली बार न्याय पंचायत स्तर तक अपनी कमेटी बनाई और पूरे प्रदेश में इसके लिए संगठन सृजन अभियान चलाया गया। इन दलों के अलावा प्रसपा, अपना दल और सुभासपा के अलावा हो या ओवैसी की एआईएमएईएम ने भी खूब मेहनत की। निश्चित रूप उप्र पंचायत चुनावों के यह नतीजे बहुत बड़ी आबादी के मानस का प्रतिनिधित्व करते हैं इसीलिए सभी दलों की प्रतिष्ठा दांव पर है।