प्रसंगवश : चुनाव करीब आते ही आयी सरकार को किसानों की याद यूपी में यूपी कृषि निर्यात को 17,591 करोड़ रुपए से बढ़ाकर दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया। नीति-2019 बनी, प्रोत्साहन के लाजवाब प्रावधान किए गए। पर 50 हेक्टेयर के क्लस्टर में 20-20 हेक्टेयर की भूमि आपस में जुड़े होने की अव्यवहारिक शर्त रख दी। छोटे किसान न तो इस नीति को जान सकें और न उनकी हैसियत इसकी शर्त पूरी करने की थी। योजना को देखकर लग रहा है कि सिर्फ बड़े किसानों व कॉर्पोरेट ही इसके केंद्र में हैं। इसलिए आज तक कोई कलस्टर तैयार नहीं हो सका। यूपी में 2.30 करोड़ किसान हैं। 92.9 प्रतिशत लघु व सीमांत किसान हैं। लघु व सीमांत के पास ढाई एकड़ से कम जमीन होती है।
प्रसंगवश : उप्र में विधानसभा चुनाव से पहले गाय पर सियासत यूपी में तमाम एफपीओ ने अपने काम से प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। इस गुण को पहचान कर सरकार ने एफपीओ 2020-21 में धान खरीद की जिम्मेदारी सौंपी। प्रयोग कारगर रहा। पर गेहूं सीजन आया तो एक वर्ष पुराने पंजीकरण, 10 लाख की कार्यशील पूंजी जैसी कई शर्तें जोड़ दी गई। कईयों ने हाथ खड़े कर दिए। और धान सीजन आया तो यह नीति बरकरार रही। इस नई धान नीति में एफपीओ को खरीद व्यवस्था से बाहर ही कर दिया गया। जब सरकार की बनाई नीति से सरकार और किसानों को लाभ हुआ तो अचानक ऐसा क्या हुआ है कि अपनी सफलता सरकार को नहीं पची। सवाल है कि किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी। अगर सरकार इसी तरह से जमीनी हकीकत से दूर रह कर नीतियां बनाएगी तो लाभ की जगह नुकसान हो सकता है। फिर किसान की मायूसी सरकार के लिए भी ठीक नहीं है। (सं.कु.श्री)