यूपी में बकरीद पर किसी भी सार्वजनिक स्थल पर कुर्बानी बर्दाश्त नहीं : सीएम योगी केजीएमयू के चिकित्सा अधीक्षक डॉ डी हिमांशु व माइक्रोबायोलॉजी के डॉक्टर प्रशांत गुप्ता ने ब्लैक फ़ंगस में दवाओं की क्रियाशीलता जांची तो पाया कि इसमें इट्राकोनाजोल की संसिटिवटी करीब 60 फ़ीसदी से अधिक है। साथ ही इसे जुड़े अन्य मानक भी बेहतर पाए गए हैं। माइक्रोबायोलॉजिकल मूल्यांकन में इस दवा ब्लैक फ़ंगस के लिए बेहद कारगर माना गया है। डॉक्टर प्रशांत गुप्ता का कहना है कि यह दवा मरीजों को काफी राहत पहुंचाएगी।
टेबलेट और इंजेक्शन दोनों रुप में उपलब्ध :- यूपी में ब्लैक फंगस के अधिकतर मरीज राइजोपस ओराइजी केटेगरी के होते हैं। जिसमें इट्राकोनाजोल काफी मददगार सिद्ध हो रही है। यह टेबलेट और इंजेक्शन के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं।
राइजोपस ओराइजी में इट्राकोनाजोल राहत भरी :- नई दवा की तलाश करने वाले केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ प्रशांत गुप्ता ने बताया कि, ब्लैक फंगस कई तरह का होता है। यूपी में ज्यादातर मरीज राइजोपस ओराइजी के पाए जाते हैं। इसमें इट्राकोनाजोल काफी राहत भरी है।
ब्लैक फंगस की दवाएं महंगी :- मई माह में अचानक यूपी में ब्लैक फंगस के मरीज मिलने लगे। जिस पर चिकित्सा विशेषज्ञों के राज्य परामर्शदाता कमेटी ने इलाज में एमफोटेरेसिन—बी दवा को मरीजों को देने को कहा। और इसका विकल्प पोसाकोनाजोल और इसकोनाजोल को बताया गया। मरीजों की संख्या बढ़ने के बाद यह दवाएं बाजार में आसानी से नहीं मिल रहीं थी। एमफोटेरेसिन-बी बाजार में मूल्य 2500 रुपए और बाकी दोनों दवाएं एक हजार में बिकी है। वहीं दूसरी तरफ इट्राकोनाजोल करीब सौ से डेढ़ सौ रुपए में मिल रही है।
इट्राकोनाजोल के सकारात्मक परिणाम :- केजीएमयू के चिकित्सा अधीक्षक डॉ डी हिमांशु ने बताया कि, इट्राकोनाजोल आसानी से उपलब्ध है। सस्ती है। कुछ मरीजों को यह दवा दी गई तो सकारात्मक परिणाम आए। अब इस पर विस्तार से काम किया जा रहा है।