लखनऊ. आज भोजपुरी भाषा का विस्तार तेजी से हाे रहा है। इसकी पहुंच दुनिया भर में है क्यों कि यहां के लोग हर जगह पर मौजूद हैं। ये जहां भी गए अपनी भाषा को भी वहां पर पहुंचाने में सफल रहे। आज कई देशों में भोजपुरी भाषा बोलने वाले काफी संख्या में हैं, ये लोग वहां अपनी काफी अच्छी पोजीशन तो बनाए ही हैं साथ ही अपने मेहनत और काम के बल पर ये वहां के चुनिन्दा लोगों में भी शुमार हैं। भोजपुरी भाषा क्या है, कहां से शुरू हुई और कैसे इसका धीरे-धीरे विस्तार होता गया।
हिंदी की एक बोली है भोजपुरी एक मीठी भाषा है। भाषाई परिवार के स्तर पर यह एक आर्य भाषा है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्र में बोली जाती है। आधिकारिक और व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी की एक बोली है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिए संस्कृत और हिन्दी पर निर्भर है, वहीं कुछ शब्द इसने उर्दू से भी लिया है।
विश्व के सभी महाद्वीपों में है आज भोजपुरी भाषा किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इस भाषा को बोलने वाले, उसे जानने और समझने वालों का विस्तार विश्व के सभी महाद्वीपों पर है, इसका कारण ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाए गए मजदूर हैं, ये गए तो थे वहां मजदूरी करने लेकिन वहीं के होकर रह गए। अब इनके वंशज जहाँ उनके पूर्वज गये थे वहीं बस गये हैं। इनमें सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी आदि देश प्रमुख हैं जहां भोजपुरी का बोलबाला या यूं कहें जलवा है। जनगणना 2001 के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 3.3 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। पूरे विश्व में भोजपुरी जानने वालों की संख्या लगभग 5 करोड़ है।
भोजपुर से शुरू हुई थी भोजपुरी भोजपुरी बोलने वाले भोजपुरी तो बोलते हैं, लेकिन अधिकतर लोगों को शायद ही पता होगा कि आखिर जिस भाषा को वे बोल रहे हैं उसकी उत्पत्ति कहां से हुई। भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार के आरा शाहाबाद जिले में स्थित भोजपुर नामक गांव के नाम पर हुआ है। पूर्ववर्ती आरा जिले के बक्सर सब डिविजन (अब बक्सर) अलग जिला है में भोजपुर नाम का एक बड़ा परगना है, जिसमें नवका भोजपुरा् और पुरनका भोजपुरा् दो गाँव हैं। मध्य काल में इस स्थान को मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा था। इसी कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम भोजपुरी पड़ गया।
एक हजार से अधिक साल पुरानी है भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है। 1000 से अधिक साल पुरानी है। गुरु गोरख नाथ ने 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीर दास 1297 का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यहां है इसका जोर भोजपुरी भाषा बिहार और यूपी के कई जिलों में बोली जाती है। यह भाषा बिहार के बक्सर, सारण, छपरा, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण, पश्चिम चम्पारण, वैशाली, भोजपुर, रोहतास, बक्सर, भभुआ आैर अासपास के इलाकों में भोजपुरी बोली जाती है। इस क्षेत्र को भोजपुरी क्षेत्र भी कहा जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश के बलिया, वाराणसी, चन्दौली, गोरखपुर, महाराजगंज, गाजीपुर, मिर्जापुर, मऊ, इलाहाबाद, जौनपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बस्ती, गोंडा, बहराइच, सिद्धार्थनगर, आजमगढ एवं अन्य आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। झारखण्ड में यह भाषा मुख्यरूप से पलामु और गढ़वा जिलों में बोली जाती है। नेपाल के रौतहट, बारा, बीरगंज, चितवन, नवलपरासी, रुपनदेही, कपिलवस्तु, पर्सा जैसे जिलों में बोली जाती है ।
भोजपुरी की प्रधान बोलियाँ -आदर्श भोजपुरी
-पश्चिमी भोजपुरी
-मघेसी तथा थारु के रूप में अन्य दो उप बोलीयां प्रसिद्ध हैं
आदर्श भोजपुरी आदर्श भोजपुरी को डॉ॰ ग्रियर्सन ने स्टैंडर्ड भोजपुरी कहा है। यह प्रधानतया बिहार राज्य के आरा जिला और उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर जिले के पूर्वी भाग और घाघरा सरयू एवं गंडक के दोआब में बोली जाती है। यह काफी बड़े क्षेत्र में फैली हुर्इ है। इसमें अनेक स्थानीय विशेताएँ पाई जाती है। जहाँ शाहाबाद, बलिया और गाजीपुर आदि दक्षिणी जिलों में ‘ड़’ का प्रयोग किया जाता है वहाँ उत्तरी जिलों में ‘ट’ का प्रयोग होता है। इस प्रकार उत्तरी आदर्श भोजपुरी में जहाँ ‘बाटे’ का प्रयोग किया जाता है वहीं दक्षिणी आदर्श भोजपुरी में ‘बाड़े’ प्रचलन में है। गोरखपुर की भोजपुरी में मोहन घर में ‘बाटें’ कहते हैं वहीं बलिया में मोहन घर में ‘बाड़ें’ बोला जाता है। पूर्वी गोरखपुर की भाषा को गोरखपुरी कहा जाता है परंतु पश्चिमी गोरखपुर और बस्ती जिले की भाषा को सरवरिया नाम दिया गया है । सरवरिया शब्द सरुआर से निकला हुआ है जो सरयूपार का अपभ्रंश रूप है। सरवरिया और गोरखपुरी के शब्दों. विशेषतः संज्ञा शब्दों. के प्रयोग में भिन्नता पाई जाती है। बलिया (उत्तर प्रदेश) और सारण (बिहार) इन दोनों जिलों में आदर्श भोजपुरी बोली जाती है। लेकिन कुछ शब्दों के उच्चारण में थोड़ा अन्तर है। सारण के लोग ‘ड़’ का उच्चारण ‘र’ करते हैं । जहाँ बलिया निवासी घोड़ागाड़ी आवत ‘बा’ कहता है, वहीं छपरा या सारण का निवासी घोरा गारी आवत ‘बा’ बोलता है। आदर्श भोजपुरी का बहुत ही निखरा रूप बलिया और आरा जिले में हीं बोला जाता है।
पश्चिमी भोजपुरी
यह भाषा जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, गाजीपुर के पश्चिमी भाग और मिर्जापुर में बोली जाती है। आदर्श भोजपुरी और पश्चिमी भोजपुरी में बहुत अ
धिक अन्तर है। पश्चिमी भोजपुरी में आदर सूचक के लिये ‘तुँह’ का प्रयोग दिखता है परंतु आदर्श भोजपुरी में इसके लिये ‘उरा’ प्रयुक्त होता है। वाराणसी की पश्चिमी भोजपुरी में इसके लिये ‘बदे’ या ‘वास्ते’ का प्रयोग करने का चलन है।
पश्चिमी भोजपुरी के कुछ उदाहरण.
हम खरमिटाव कइली हा रहिला चबाय के।
भेंवल धरल बा दूध में खाजा तोरे बदे।
जानीला आजकल में झनाझन चली रजा।
लाठी, लोहाँगी, खंजर और बिछुआ तोरे बदे।
मधेसी मधेसी शब्द संस्कृत के मध्य प्रदेश से निकला है जिसका अर्थ है बीच का देश। चूँकि यह बोली तिरहुत की मैथिली बोली और गोरखपुर की भोजपुरी के बीच वाले स्थानों में बोली जाती है, अतः इसका नाम मधेसी अर्थात वह बोली जो इन दोनों के बीच में बोली जाए पड़ गया है। यह बोली चंपारण जिले में बोली जाती।
थारू थारू लोग नेपाल की तराई में रहते हैं। ये बहराइच से चंपारण जिले तक पाए जाते हैं और भोजपुरी बोलते हैं। वहीं गोंडा और बहराइच जिले के थारू लोग भोजपुरी बोलते हैं जबकि वहाँ की भाषा पूर्वी हिन्दी अवधी है।