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लखनऊ

बीजेपी के साथ जाना जयंत की मजबूरी, जानें क्यों? राहुल के यूपी में आने से पहले INDIA का साथ छोड़ सकते हैं छोटे चौधरी

जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी को लेकर चर्चा है कि वह सपा का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन में आ सकती है।

लखनऊFeb 08, 2024 / 09:17 am

Aman Kumar Pandey

pm modi
बिहार में नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) का साथ छोड़कर एनडीए (NDA) का दामन थाम कर 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। अब इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी सियासी तस्वीर बदलती दिख रही है। यहां समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति जता चुके जयंत चौधरी भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि आरएलडी की बीजेपी नेतृत्व के साथ बातचीत दौर जारी है और इसे लेकर जल्द ही फैसला हो सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि सपा के साथ 7 लोकसभा सीटें पाने वाले जयंत चौधरी बीजेपी से 5 सीटों के समझौते पर भी राजी हो सकते हैं।
सपा के साथ चुनाव लड़ने का नहीं मिला फायदा
जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के साथ कई चुनाव लड़े हैं। अखिलेश यादव के साथ उनकी अच्छी दोस्ती के साथ केमिस्ट्री भी दिखी थी। लेकिन अब तक एक साथ मिलकर लड़ने का कोई खास फायदा आरएलडी (RLD) को नहीं मिला है। ऐसे में आरएलडी ने आगे की संभावनाओं को देखते हुए इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) को छोड़कर बीजेपी के ही साथ जाने की तैयारी कर ली है। सपा के समर्थन से ही मई 2022 में राज्यसभा सांसद बने जयंत चौधरी का मानना है कि यदि वे बीजेपी के साथ गए तो उनकी जीत का औसत बढ़ सकता है। सपा के साथ 7 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी कितने पर जीत मिलेगी। इसे लेकर आरएलडी में संशय की स्थिति है। इसलिए आरएलडी सपा की 7 सीटें छोड़कर बीजेपी के साथ जाने की पहली वजह यही है।
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पार्टी की मान्यता पर भी खतरा
दूसरी मुख्य वजह यह है कि आरएलडी के सामने राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी का दर्जा छिनने का भी खतरा है। यदि पार्टी का वोट शेयर कम रहेगा तो फिर यह संकट उसके दरवाजे पर दस्तक देगा। ऐसे में आरएलडी को लगता है कि वह बीजेपी के साथ जिन सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी। वहां उसकी जीत की संभावनाएं अधिक होंगी और इसके साथ वोट प्रतिशत भी ज्यादा होगा। साल 2009 में भी आरएलडी ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा था और तब उसे 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। आरएलडी उसी पुराने मॉडल को एक बार फिर से दोहराना चाहती है।
बेस वोट बचाने की भी मजबूरी
रालोद के सामने तीसरी सबसे बड़ी समस्या पार्टी के बेस वोट बैंक को बिखरने से बचाने का है। दरअसल आरएलडी को जाट मतदाताओं की पार्टी माना जाता है। लेकिन यूपी के विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में जाट वोट बंट गए थे। इसकी वजह यह है कि बीजेपी को भी जाट मतदाता बड़ी संख्या में वोट करते रहे हैं। खासतौर पर तब उनका झुकाव बीजेपी की ओर अधिक होता है, जब आरएलडी के जीतने की संभावना न हो। इसलिए आरएलडी जाटों के एकमुश्त वोट पाने और अन्य समुदायों को भी साथ जोड़ने के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन में जाना चाहती है।

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