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लखनऊ

#worldheritageday  भूलभुलैया ने अकाल पीड़ितों की मिटाई थी भूख

यह शहर यूं हीं नहीं कहलाता है नवाबों का शहर, इस शहर की दरों दीवारों पर नवबियत की झलक आज भी दिखती है

लखनऊApr 15, 2016 / 12:30 pm

Santoshi Das

bhool bhulaiya

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लखनऊ. यह शहर यूं हीं नहीं कहलाता है नवाबों का शहर। इस शहर की दरों दीवारों पर नवबियत की झलक आज भी दिखती है। यहां बड़ा इमामबाड़ा है। भूलभुलैया और छतर मंजिल जैसी ऐतिहासिक इमारते हैं। इनको देखते ही मानों यह अपनी आप बीती खुद ही सुनाने लगते हैं। रेसीडेंसी आज भी अंग्रेजों के सितम की दास्तां और क्रांतिकारियों के क्रोध को दर्शाता है। इस शहर का नाम लखनऊ है। इस अवध की सरजमीं पर यूं तो कई विरासत अपने इतिहास को समेटे हुए है लेकिन आज पत्रिका आपको पुराने लखनऊ की शान भूलभुलैया के बारे में बताने जा रहे हैं।

भूलभुलैया गंगा नदी की सहायक नदी गोमती के किनारे बसा हुआ है। इस ऐतिहासिक इमारत को देखने के लिए लखनऊ ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने से लोग लखनऊ आते हैं। इस इमारत की अद्भुत वास्तु कला सभी का मन मोह लेती है। आज इस इमारत की भव्यता बताती है की उस दौर में नवाबों का कितना बड़ा रुतबा था? भूलभुलैया का निर्माण नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1784 में करवाया था।

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अकाल पीड़ितों के राहत के लिए बनाया गया था
भूलभुलैया का निर्माण नवाब ने अकाल से पीड़ित जनता को राहत देने के लिए बनवाया था। इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने का श्रेय किफ़ायतउल्ला को जाता है जिनके संबंधी ने ताजमहल का निर्माण करवाया था।

वास्तुकला है ख़ास
भूलभुलैया की वास्तुकला में गौथिक प्रभाव के साथ, राजपूत और मुग़ल शैली की छाप दिखती है। भूलभुलैया की इमारत ना तो मस्जिद में गिना जाता है ना ही मकबरे में।
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भूलभुलैया में क्यों खो जाते हैं पर्यटक?

इस भवन में तीन विशाल कक्ष है इसकी दीवारों के बीच में छुपे हुए लम्बे गलियारे हैं। यह दीवारें लगभग 20 फ़ीट मोटे होते हैं। यह घनी गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है। इसमें केवल वो ही जा पाते हैं जिनका दिल मजबूत है। इसमें 1000 से अधिक छोटे रास्ते हैं। जिसमें कुछ के सिरे बंद हैं। बिना गाइड के आप इस भूल भुलैया में गुम हो जायेंगे।

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इतिहासकार बोले लखनऊ की शान
इतिहासकार योगेश प्रवीन ने बताया की यह इमारत लखनऊ की शान है। इस भव्य इमारत की वजह से लखनऊ के लोगों की रोजी रोटी चली थी। आज भी इसकी खूबसूरती के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ। आज भी यह इमारत सैकड़ों लोगों के घरों में दो जून की रोटी और तन ढकने को कपड़ा दे रहा है।

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