दो बार सीख लेने के बावजूद प्रबंधक बिना अनुमति के तदर्थ (एडहॉक) शिक्षकों की नियुक्तियां करते रहे। सरकार ने इन्हें रेगुलर करने से इनकार कर दिया। इनमें 2000 से पहले और इसके बाद तदर्थ नियुक्त शिक्षक शामिल हैं। प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन राहत नहीं मिली। इतना जरूर कहा कि इन्हें चयन प्रक्रिया में लाकर लिखित परीक्षा में शामिल कराया जाए और भारांक देकर रिजल्ट घोषित करा दिया जाए।
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छह साल के बेटे से पिता ने साइन कराया एग्रीमेंट, इतनी बड़ी-बड़ी रख दी शर्तें इन शिक्षकों की नौकरी पर लगा विराम विभिन्न विद्यालयों में 24 ऐसे तदर्थ शिक्षक हैं जिन्हें अब वेतन नहीं मिलेगा। केवल एक शिक्षक परीक्षा में बैठ सके और भारांक के आधार पर उनका चयन हो गया। बाकी फेल हो गए। जिन शिक्षकों का वेतन रोका गया है, सभी की नौकरी के चार-पांच साल बचे हैं। शहर के 12 ऐसे तदर्थ शिक्षक हैं जो रिटायर भी हो चुके हैं। इन्हें आस थी कि देर-सबेर रेगुलर हो जाने से इनकी पेंशन बन जाएगी पर यह आस भी टूट गई।
अब राहत की नहीं कोई उम्मीद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष हरिश्चंद्र दीक्षित ने बताया कि शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) के आदेश में स्पष्ट है कि अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में 30 दिसंबर 2000 से पूर्व या बाद में कार्यरत शिक्षक जो कोर्ट के अंतिम-अंतरिम आदेश से वेतन प्राप्त कर रहे हैं, के विनियमितीकरण के संबंध में परीक्षण के बाद प्रकरण पर वित्त विभाग एवं न्याय विभाग की सहमति नहीं है।