कोरोना काल ने छीनी मदरसा शिक्षकों की नौकरी, कोई रिक्शा चलाने तो कोई सब्जी बेचने को मजबूर
Employment of modern Madarsa Teachers affected during Lockdown Period- कोरोना के राज्य में लगने वाले लॉकडाउन में कई मदरसा शिक्षकों (Madarsa Teachers) को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। घर से बाहर निकलना भी बंद हो गया जिससे ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षकों का भी व्यवसाय चौपट हो गया। ऑनलाइन क्लास से कुछ खास मुनाफा न होते देख कई ने इससे किनारा कर लिया। अब घर चलाने के लिए कोई सब्जी बेचने को मजबूर है, तो कोई रिक्शा चलाकर जीवन यापन करता है।
लखनऊ. Employment of modern Madarsa Teachers affected during Lockdown Period . कोरोना महामारी (Corona Virus) ने लोगों की जान पर तो कहर बरपाया है साथ ही व्यवसाय पर भी बुरा प्रभाव डाला है। कोरोना के कारण राज्य में लगने वाले लॉकडाउन में कई मदरसा शिक्षकों (Madarsa Teachers) को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। घर से बाहर निकलना भी बंद हो गया जिससे ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षकों का भी व्यवसाय चौपट हो गया। ऑनलाइन क्लास से कुछ खास मुनाफा न होते देख कई ने इससे किनारा कर लिया। अब घर चलाने के लिए कोई सब्जी बेचने को मजबूर है, तो कोई रिक्शा चलाकर जीवन यापन करता है। उत्तर प्रदेश में कमोबेश 450 मदरसा आधुनिक शिक्षक हैं। इनमें से अधिकतर ऐसे हैं जो परिवार चलाने के लिए दूसरे व्यवसाय से जुड़ गए हैं। अप्रैल 2017 के बाद से केंद्र सरकार की ओर से मानदेय जारी नहीं होने के कारण यह शिक्षक आर्थिक तंगी का शिकार हो गए हैं। राज्य सरकार की ओर से दो तीन माह में राज्यांश जारी किया जाता है, लेकिन वह भी जरूरतों के हिसाब से नाकाफी है। ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर हैं, जो आधुनिक समाज में शिक्षकों की गरिमा के अनुरूप नहीं माना जाता।
मिलने वाला राज्यांश भी नाकाफी मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के जिलाध्यक्ष मो. इरफान खान कहते हैं कि मदरसा आधुनिक शिक्षकों का हाल ऐसा ही है। कोई सब्जी बेच कर गुजारा कर रहा है तो कोई किराना दुकान पर सेल्समैन के तौर पर तीन हजार रुपये महीने पर काम करने को मजबूर है। अपने संघर्ष को लेकर कहा कि उन्होंने वेतन पाने के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगाई, लेकिन आज तक कोई हल नहीं निकला। महंगाई के इस दौर में मदरसा आधुनिक शिक्षकों का वेतन 10 हजार (स्नातक) और 15 हजार (परास्नातक) है। यह रकम एक परिवार चलाने के लिए काफी कम है। इसमें भी अगर 40 माह से मात्र 25 फीसदी वेतन मिले तो गुजारा नामुमकिन है। 25 फीसदी यानी दो हजार और तीन हजार रुपये राज्यांश, जो कि चार माह में एक बार ही मिलता है।
महंगाई के दौर में बढ़ता जा रहा खर्च पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में यह स्कीम शुरू हुई थी। तब इस मद में सात करोड़ रुपये बजट आवंटित किया गया था। इसके बाद सभी राज्यों में आधुनिक मदरसा शिक्षक भर्ती किए गए तो बजट बढ़कर करीब ढाई सौ करोड़ रुपये पहुंच गया। तब से केंद्र की ओर से बजट जारी नहीं किया जा रहा है, जबकि खर्च हर साल बढ़ता जा रहा है।
लंबे समय से रुकी है केंद्रांश की धनराशि मदरसा आधुनिक शिक्षक मो. आजम अंसारी का कहना है कि लॉकडाउन में मदरसा शिक्षक होम ट्यूशन देकर या लिखा पढ़ी का काम कर परिवार चला रहे थे। लॉकडाउन में एक तरफ ट्यूशन बंद हुई, तो दूसरी तरफ दुकानें और संस्थान बंद हो गए। इससे लिखापढ़ी का काम ही खत्म हो गया। मानदेय नहीं मिल रहा। लेकिन परिवार चलाने के लिए कुछ तो करना ही है। ऐसे में पहले से ही आर्थिक तंगी से गुजर रहे टीचरों के पास ई-रिक्शा, सब्जी बेचने जैसे काम करना मजबूरी हो गई है। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी आशुतोष पांडे ने इस पर कहा कि मदरसा आधुनिक शिक्षकों के मानदेय का केंद्रांश काफी समय से रुका हुआ है। केंद्रांश की धनराशि जारी होने पर शिक्षकों के खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी। बकाया राशि कब और किस प्रकार दी जाएगी, इसका निर्णय शासन स्तर पर होता है। जो भी शासन का निर्णय होगा उसी के अनुसार धनराशि जारी की जाएगी।