पीडियाट्रिक सर्जन प्रो. विजय उपाध्याय ने परीक्षण किया तो पाया कि बच्चे के खाने की नली नीचे तक नहीं जुड़ी है। खाने की नली से सांस की नली भी जुड़ी है। प्रो. उपाध्याय ने सर्जरी कर सांस की नली के साथ खाने की नली को जोड़ा, तो बच्चे को राहत मिली। चार दिन बाद नवजात ने दूध पिया तो मां ने राहत की सांस ली।
चार हजार में से एक बच्चे में होती है ये परेशानी प्रो. उपाध्याय के मुताबिक कई बार सांस की नली ठीक होती है, लेकिन खाने की नली नहीं बनी होती। ऐसे मामले में आहार नली को गले से पास निकाल देते हैं और आमाशय (पेट में भोजन एकत्र करने वाली थैली) में एक ट्यूब डालकर उसका मुंह बाहर निकाला जाता है, जिससे बच्चे को आहार दिया जाता है। बच्चे का वजन 10 किलो हो जाने पर आमाशय को खाने की नली से जोड़ा जाता है। इस बीमारी को डॉक्टरी भाषा में ट्रैकियल इसोफेजियल फेस्चुला एट्रेसिया कहते हैं। जन्म लेने वाले हर चार हजार में से एक बच्चे को यह बीमारी होती है।
देर करने पर बीमारी लेती है गंभीर रूप खाने की नली के सांस की नली से जुड़े होने पर बच्चे को दूध पिलाने पर दूध फेफड़ों में चला जाता है। इससे बच्चो को निमोनिया होने का खतरा रहता है। इससे बच्चे की हालत गंभीर हो जाती है।
इन लक्षणों से पहचानें बीमारी अगर बच्चा दूध न पीए, पीते ही उल्टी कर दे, बच्चे की तेज सांस चले, मुंह से लार अधिक आए तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
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