रनीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि मनुष्य को जहर से भी अमृत निकाल लेना चाहिए। इसी प्रकार से यदि सोना गंदगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए। इसमें थोड़ा भी संकोच नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही यदि किसी कमजोर कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान मिल सकता है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इसमें कोई दोष नहीं है। चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणों से युक्त है और आपको कोई सीख देती है तो इसे भी अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।