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लखनऊ

Uttar Pradesh Assembly election 2022 : नीले से भगवा हुआ बसपा का रंग, ‘कांशी’ के संग जुड़े राम-परशुराम

UP Assembly Election 2022 Updates: बहुजन समाज पार्टी के सम्मेलनों में प्रयुक्त बैनरों में 80 प्रतिशत में भगवा और महज 20 फीसद में नीला रंग सिमट गया है

लखनऊJul 24, 2021 / 06:24 pm

Hariom Dwivedi

BSP chief mayawati strategy for up elections 2022
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. UP Assembly Election 2022 Updates- बसपा के झंडे का रंग नीला है। वैज्ञानिक व्याख्या के अनुसार नीला रंग आत्म निरीक्षण के लिए व्यक्ति को प्रेरित करता है। …तो क्या यह मान लिया जाए कि बसपा विधानसभा चुनाव 2022 (uttar pradesh assembly elections 2022) में आत्मनिरीक्षण को तैयार है। क्योंकि, नीले रंग के ऊपर त्याग, शुद्धता और सेवा का प्रतीक भगवा रंग चढ़ गया है। पार्टी के सम्मेलनों में प्रयुक्त बैनरों में 80 प्रतिशत में भगवा और महज 20 फीसद में नीला रंग सिमट गया है। 2007 में यूपी की सियासत में एक नारा उछाला गया था –ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा। लगता है इस बार फिर से यह नारा फिर से लौट रहा है। बसपा नेता शंख बजाकर कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं। कांशीराम के साथ जयश्रीराम और जय परशुराम के नारे गूंज रहे हैं। पार्टी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों में गणेश वंदना हो रही है। बसपाई चकित हैं। कहते हैं पार्टी का कायाकल्प हो रहा है।
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मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग बताया
शुक्रवार को अयोध्या में रामलला और हनुमानगढ़ी में बजरंग बली की पूजा के बाद शुरु हुए ब्राह्मण सम्मेलन का नाम तकनीकी रूप से बदलकर ‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी’ कर दिया गया। अगली गोष्ठी प्रयागराज और फिर वाराणसी में होगी। इन गोष्ठियों को बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग बताया है।
मंच पर दिखे भगवाधारी
अयोध्या में बसपा के मंच पर बड़ी संख्या में भगवाधारी थे। जय श्रीराम और जय परशुराम के नारे भी लग रहे थे। सामाजिक समरसता की बातें हो रही थीं।

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सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक दयाशंकर राय कहते हैं रामनगरी से ब्राह्मण गोष्ठी की शुरुआत बसपा के सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड की रणनीति का हिस्सा है। जब अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी मंदिरों में दर्शन व साधु-संतों से आशीर्वाद लेकर हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं, तो मायावती भला इससे पीछे क्यों रहें।
तिलक, तराजू और तलवार…
बदली राजनीतिक परिस्थितियों में बसपा इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दे रही है। ब्राह्मणों का तिलक कर रही है। लेकिन पार्टी का शुरुआती ग्राफ तो तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार जैसे नारों से ही ऊपर उठा था। इसीलिए दलित राजनीतिक चिंतक मायावती के हालिया कदम से इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं सत्ता की भूख के चलते कांशीराम के मिशन से बसपा भटक गई हैं। अब इसका मतलब बहुजन समाज पार्टी नहीं बल्कि ब्राह्मण समाज पार्टी है।
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ब्राह्मणों पर दांव क्यों?
-यूपी में लगभग 13 फीसदी ब्राह्मण
-कई विधानसभा सीटों पर 20 फीसद ब्राह्मण मत
-2017 में सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला कामयाब

सतीश चंद्र मिश्र बोले
13 फीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलित मिलें तो बन जाएगी बसपा सरकार
-ब्राह्मण समाज परशुराम के वंशज मन से डर निकालिए

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