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मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग बताया
शुक्रवार को अयोध्या में रामलला और हनुमानगढ़ी में बजरंग बली की पूजा के बाद शुरु हुए ब्राह्मण सम्मेलन का नाम तकनीकी रूप से बदलकर ‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी’ कर दिया गया। अगली गोष्ठी प्रयागराज और फिर वाराणसी में होगी। इन गोष्ठियों को बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग बताया है।
अयोध्या में बसपा के मंच पर बड़ी संख्या में भगवाधारी थे। जय श्रीराम और जय परशुराम के नारे भी लग रहे थे। सामाजिक समरसता की बातें हो रही थीं।
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सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक दयाशंकर राय कहते हैं रामनगरी से ब्राह्मण गोष्ठी की शुरुआत बसपा के सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड की रणनीति का हिस्सा है। जब अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी मंदिरों में दर्शन व साधु-संतों से आशीर्वाद लेकर हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं, तो मायावती भला इससे पीछे क्यों रहें।
बदली राजनीतिक परिस्थितियों में बसपा इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दे रही है। ब्राह्मणों का तिलक कर रही है। लेकिन पार्टी का शुरुआती ग्राफ तो तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार जैसे नारों से ही ऊपर उठा था। इसीलिए दलित राजनीतिक चिंतक मायावती के हालिया कदम से इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं सत्ता की भूख के चलते कांशीराम के मिशन से बसपा भटक गई हैं। अब इसका मतलब बहुजन समाज पार्टी नहीं बल्कि ब्राह्मण समाज पार्टी है।
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ब्राह्मणों पर दांव क्यों?-यूपी में लगभग 13 फीसदी ब्राह्मण
-कई विधानसभा सीटों पर 20 फीसद ब्राह्मण मत
-2017 में सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला कामयाब सतीश चंद्र मिश्र बोले
13 फीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलित मिलें तो बन जाएगी बसपा सरकार
-ब्राह्मण समाज परशुराम के वंशज मन से डर निकालिए