इतिहास के मुताबिक बाबर का बेटा हुमायूं शांत प्रकृति का था, वह अपने पिता बाबर की तुलना में युद्ध से कतराता था और साम्राज्य विस्तार की उसकी इच्छाएं ना के बराबर थी। वह पुस्तकों का प्रेमी था और उसकी मौत भी पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसलने के कारण हो गई थी।
अकबर के समय 20 से अधिक हमले 1556 से 1605 तक अकबर के शासन काल में 20 बार से अधिक हमले हुए। जीववैज्ञानिक काल क्रम में तुर्क और मंगोल मां-बाप की औलाद बाबर में जो क्रूरता और साम्राज्य की सनक भरी थी, वह उसके बेटे हुमायूं में काफी कम थी। जबकि बाबर के नाती अकबर को तो इतिहासकारों ने सहिष्णु ही घोषित कर दिया। कमोबेश उसे माना भी जा सकता है। हांलाकि श्रीरामजन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए हिंदुओं ने अकबर के समय में बीस बार से अधिक बार चढ़ाई किया और युद्ध भी हुए।
इन युद्धों मेें स्वामी बलरामाचार्य निरंतर लड़ते रहे और आखिरकार वीरगति को प्राप्त किया। स्वामी बलरामाचार्य के बारे में इतिहास में कम ही जानकारी दर्ज की गई हैं, जिसके कारण यहां पर विस्तार नहीं दिया जा सकता।
बहरहाल, लगातार युद्धों से अकबर आजिज आ गया। अब क्या करें? सवाल राज्य विस्तार का था, तो दूसरी तरफ से राजस्थान के मेवाड़ से लगातार चुनौती मिल रही थी। वह राजस्थानी बड़ी सेनाओं का सामना करें या अयोध्या में साधु संतों से लड़ाई पर अपनी सेना की ताकत जाया करे। इन्हीं सवालों को लेकर उसने अपने मंत्रीमंडल की बैठक बुलाई। अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा शुरू कर दिया कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या है।
अकबर के मंत्रियों ने सुझाव दिया कि अयोध्या का हिंदुओं के लिए बहुत अधिक महत्व है और वह शांत नहीं बैठेगें। अकबर के जीवनी लेखक अबुल फजल ने आईन ए अकबरी में 1598 में लिखा कि ‘हिंदुओं के लिए अयोध्या का बड़ा ही महत्व है और राम की पूजा उनके लिए परम श्रद्धा का विषय है। बादशाह अकबर ने हिंदुओं में श्रीराम के प्रति आस्था को देखते हुए राम और सीता की तश्वीर वाली मुहरें भी जारी किया था। यहां तक कि उसने तांबे के सिक्कों का टकसाल भी अयोध्या में बनवाया।’
अकबर के नौरत्नों में शामिल राजा बीरबल और राजा टोडरमल ने उसे सुझाव दिया कि हिंदुओं को पूजा का अधिकार देना ही इसका एक मात्र समाधान है। गहरे विचार-विमर्श के बाद अकबर ने फरमान जारी किया कि बाबरी मस्जिद के सामने चबूतरा बनाकर उस पर छोटा सा राममंदिर बनाया जाए। बाद में इस चबूतरे पर ही संगमरमर का राममंदिर बनकर तैयार हुआ और हिंदू पूजा-पाठ शुरू कर दिए। अकबर ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी तरह हिंदुओं को पूजापाठ में व्यवधान नहीं आना चाहिए।
हिंदुओं के साथ कोई रियायत नहीं करनी चाहिए
अकीदा ए शहर के लेखक मिर्जा जान एक फारसी लेखक थे। उन्होंने अपनी पुस्तक में बताया कि सन् 1707 में औरंगजेब की पौत्री ने अयोध्या के बारे में लिखा कि इस्लाम की जीत को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम बादशाहों को हिंदुओं के साथ कोई रियायत नहीं बरतनी चाहिए और उनसे जजिया कर वसूलना चाहिए।
फजले गुरफान अयोध्या का अर्थ और इतिहास की अपनी पुस्तकों में इन बातों का हवाला देते हैं। वह लिखते हैं कि 1735 में फैजाबाद के काजी के हस्ताक्षर वाले एक पत्र में लिखा है कि मुसलमानों के बीच बाबरी मस्जिद पर कब्जे को लेकर बड़ा दंगा हुआ था।
औरंगजेब के समय 30 बार हुए हमले इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब के बाद मुगल शासन का पतन तेजी से शुरू हो चुका था। लगभग इसी के समय यूरोपियन व्यापारियों का आना-जाना भी शुरू हो चुका था। लेकिन कहावत है कि बुझता हुआ चिराग अधिक तेज जलने लगता है। एक तरफ मुगल काल के काले बादल भारत से छंटने शुरू हो चुके थे। तो वहीं औरंगजेब जैसा कट्टर धर्मांध शासक ने मंदिरों को लूटने की सरकारी नीति ही बना डाली।
उसने न केवल मथुरा और काशी को अपने हमलों से घायल किया बल्कि उसके दौर में अयोध्या पर 30 से अधिक बार हमले हुए। हजारों मंदिर तोड़े गए। उसके हमलों का सामना निहंगों के साथ गुरु गोविंद सिंह ने किया। बाबा वैष्णवदास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदंबा सिंह ने जमकर युद्ध किया। एकबार तो बाबरी मस्जिद हिंदुओं के कब्जे में ही आ गई थी लेकिन अगले ही दिन शाही फरमान के बाद उसे वापस ले लिया गया।
हम मुगल कालीन इतिहास लेखकों और 1932 में प्रकाशित अयोध्या का इतिहास लेखक लाला सीताराम, मेरे राम सबके राम के लेखक फजले गुरफान, कारसेवा से कारसेवा तक के लेखक गोपाल शर्मा का आभार प्रगट करते हैं।