यूं आया बदलाव
साल 2000 में रेशम का काम ज्यादा होता था, लेकिन इस समय चांदला का काम ज्यादा चल रहा है। लखनऊ की जरी और जरदोजी का इस्तेमाल आमतौर पर लहंगों, साडिय़ों और सलवार सूट में ही होता है। लेकिन अब गाउन, जैकेट, शर्ट, पर्स और यहां तक कि जूतों के ऊपरी हिस्से में इस्तेमाल होने वाली जरी-जरदोजी की मांग बढ़ रही है। जरदोजी में कई तरह के काम किए जाते हैं, जैसे- रेशम में काम, करदाना मोती, कोरा नकसीस, सादी कसब आदि।
सादे कपड़े पर मोती रेशम के धागे से डिजाइन बनाया जाता है। वक्त के साथ चिकन पर भी जरदोजी के काम होने लगे हैं, जो विश्व प्रसिद्ध है। बनारसी साडि़यों पर भी जरदोजी के काम की मांग अब ज्यादा बढ़ गई है।
रीडवलपिंग पर फोकस
शहर में पुराने हैंडवर्क स्टाइल को रीडवलप करने का चलन बढ़ गया है। लोगों के पास पुराने स्टाइल के वर्क का कलेक्शन मौजूद है, जिन्हें नई डिजाइन के साथ तैयार करने में डिजाइनर्स काफी मेहनत कर रहे हैं। इस काम के लिए कई पुश्तैनी कारीगरों की मदद ली जा रही है, जिसके तहत इनकी ऑरिजिनल खूबसूरती को बरकरार रखा जा सके। यह वर्क लहंगे के साथ साडि़यों और सूट्स में भी सबसे ज्यादा यूज हो रहे हैं। कुछ डिजाइनर्स इस तरह के स्टाइल्स को फैशन शोज में भी डिस्प्ले कर चुके हैं।
-रीना भंडारी, डिजाइनर