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त्रेतायुग में कठोर तपस्या के बूते अवढरदानी को प्रसन्न कर लंकाधिपति रावण ने उन्हें अपने साथ लंका ले जाने का वरदान मांग लिया था। पुराणों में वर्णित इस संदर्भ में आया है कि शिवलिंग रूप में भोले बाबा को सिर रखकर ले जा रहा दशानन लघुशंका पीड़ित हुआ था। असहनीय हो जाने पर उसने रास्ते पर अचानक आ निकले एक चरवाहे को शिवलिंग कुछ देर सिर पर रखने को मना लिया लेकिन रावण को उस शर्त का ख्याल न आया जो वह भगवान शिव से तय कर चुका था। यहां की हरीतिमा से प्रसन्न हुए भगवान का गोकर्ण क्षेत्र में रहने का मन आया तो उन्होंने लीला रची और खुद का भार बढ़ाते हुए चरवाहे को विवश कर दिया कि उसने शिवलिंग जमीन पर रख दिया।
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शर्त यह थी कि रावण जहां भी शिवलिंग को रख देगा भगवान वहीं स्थापित हो जाएंगे। बाद में क्रोधित रावण द्वारा चरवाहे को मारने के प्रयास और भयभीत चरवाहे के एक कुंए में गिरकर मृत्यु को प्राप्त हो जाने का वर्णन भी पुराणों में आया है। यहां विराजमान गाय के कान के आकार का दुर्लभ शिवलिंग और उनकी भव्य श्रंगार पूजा का दर्शन कर सावन मेले में दूर दूर से तीर्थयात्रियों का डेरा लग जाता है। एक महीने तक हर सोमवार को मेलार्थियों की बेहद भीड़ उमड़ती है और आखिरी सोमवार को लगने वाले भूतनाथ मेले में जनसैलाब उमड़ पड़ता है। श्रद्धालु कांवरियों और शिवभक्तों की आस्था देखते ही बनती है और छोटी काशी का नाम चरितार्थ होने की स्थिति बन आती है।
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यह मेला बस कुछ ही दिन बाद शुरू होने वाला है जिसकी गहमागहमी में अभी से तीर्थ के घाटों पर पंडे पुजारियों के तखत गुलजार हो गए हैं तो मालियों, प्रसाद व पूजन सामग्री की दुकानों पर भी चहल पहल दिखाई देने लगे हैं। नगर पालिका द्वारा मेले की तैयारियों में तीर्थ सरोवर की सफाई का काम अंतिम चरण में पहुंच रहा है और सरोवर के चारों ओर लगी दुकानों को पीछे हटवाने की तैयारी की जा रही है। मेलार्थियों की सुविधा जुटाने के साथ ही प्रशासन व पुलिस इंतजामों की दुरूस्ती में लग गए हैं।