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कुचामन शहर

पिता, दादी और दादा की मौत के बावजूद किया संघर्ष, लिखी सफलता की कहानी , एक भाई नेवी में तो दूसरे का NEET में हुआ चयन

Kuchaman News: कम उम्र में ही अपने पिता के देहांत के बाद अपनी दादी को खोया। दादी की मृत्यु के कुछ समय बाद दादा को खो दिया।

कुचामन शहरJan 16, 2024 / 01:33 pm

Nupur Sharma

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Kuchaman News: कम उम्र में ही अपने पिता के देहांत के बाद अपनी दादी को खोया। दादी की मृत्यु के कुछ समय बाद दादा को खो दिया। वितरीत परिस्थितियां और मुश्किल हालात, मदद मांगे भी तो किससे, लेकिन हालातों से समझौता करने के बजाए संघर्ष किया तथा इसके बाद ऐसा कर दिखाया जैसे अन्य बेटों से उम्मीद की जाती है। ऐसी ही संघर्ष भरी कहानी कुचामन शहर के निकटवर्ती ग्राम हरिपुरा के निवासी दो भाई भागीरथराम कसवां व दिनेश कसवां की है। नर हो, न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, बनता बस उद्यम ही विधि है, मिलती जिससे सुख की निधि है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्ता द्वारा रचित उपयुक्त कविता में निहित भावार्थ को चरितार्थ इन दोनों भाईयों ने किया है।

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प्रेरित करने पर जारी रखी पढ़ाई
पिता, दादी व दादाजी की मृत्यु के बाद इन भाईयों के प्ररेणास्त्रोत व मार्गदर्शक बने ताऊ रामूराम कसवां व चाचा जगदीश कसवां। रामूराम कसवां सरकारी विद्यालय में शिक्षक है। इस कठिन परिस्थिती में हर संभव परिवार को सहयोग भी किया। रामूराम कसवां दोनों भाईयों को वितरीत परिस्थितियों से जूझकर सफलता प्राप्त करने को लेकर हर समय प्रेरित करते रहते थे। पढ़ाई को निरन्तर जारी रखने के लिए प्रेरित किया। जिससे भारतीय नौ सेना में भर्ती होने के लिए प्रयास करने लगा। अंतत: सफलता मिली। भारतीय नौ सेना में चयनित होकर अपने आप को सफल साबित किया। भागीरथराम के छोटे भाई दिनेश कसवां का डॉक्टर बनने का सपना था, तो उन्होंने भी अपनी पढ़ाई को निरन्तर जारी रखते हुए नीट परीक्षा की तैयारी करने लगा। छोटा भाई दिनेश भी नीट परीक्षा में सफल हो गया। अभी तेलंगाना की सरकारी कॉलेज में एमबीबीएस की तैयारी कर रहा है।

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एक के बाद एक तीन मौत
ग्राम हरिपुरा के रहने वाले भागीरथ कसवां व दिनेश कसवां के पिता की मृत्यु सन् 2014 में हुई थी। दोनों भाईयों के सिर से पिता का साया उठने के बाद मानो पहाड़ टूट गया हो। पिता की मौत का गम अभी भूले ही नहीं कि अगले वर्ष 2015 में अपनी दादी को खो दिया। इसके बाद कुछ समय बाद अपने दादा को भी खो दिया। परिवार की पूरी जिम्मेदारियों का बोझ माता भगवती देवी पर आ गया। पिता की मौत के समय भागीरथराम महज 12 वर्ष तथा दिनेश 10 वर्ष का थे। मां भगवती देवी ने खेती करके दोनों भाइयों को पढ़ाया-लिखाया।

इनका कहना…
आज की युवा पीढ़ी को धैर्य रखने की जरूरत है। कई युवकों पर थोड़ा सा भी परिवार का बोझ पड़ने या कोई दुख होने पर आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेते हैं। या फिर गलत दिशा में भटक जाते हैं। परिवार में विपरीत हालात होने के बाद घबराना नहीं चाहिए, बल्कि हालात से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। संघर्ष करने वाले लोग ही सफलता की नई इबारत लिख सकते हैं।-रामूराम कसवां, शिक्षक

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