आचार्य कैलाशचंद शर्मा ने बताया कि देवशयनी एकादशी का व्रत 29 जून को रखा जाएगा। 30 जून से चातुर्मास शुरू होने के बाद सभी शुभ और मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। चातुर्मास में ध्यान योग साधना के कार्यक्रम होंगे। इस दौरान जप, तप, दान आदि वैकुंठ में जाने के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने पर देवउठनी एकादशी तक भगवान शिव धरती का कार्य भार संभालते है। यही वजह है की इन महीनों में भगवान शिव की विशेष पूजा आराधना की जाती है। चातुर्मास में हर राशि वालों को संत सेवा करना चाहिए।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि इस अवधि में किए गए जप, तप दान का फल अक्षय मिलता है। इन महीनों में भगवान क्षीर सागर की अनन्त शैया पर शयन करते हैं। एकादशी व्रत पुरुष एवं महिला दोनों को करना चाहिए। पूरे दिन निराहार रहना चाहिए।
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एकादशी को चावल खाना वर्जित
आचार्य कैलाशचंद शर्मा के अनुसार एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिष के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। ऐसे में चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती हैं और इससे मन विचलित और चंचल होता है।
पूजा विधि
सायंकाल में भगवान नारायण और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर पीले पुष्प, धूप और दीपक से पूजा व आरती करनी चाहिए। शुद्ध देशी घी से बने मिष्ठान का भोग लगाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।