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Teachers Day Special: आईआईटियंस के लाइट हाउस, जिसने रखी कोटा कोचिंग्स की नींव

पढ़िए देश को सैकड़ों आईआईटियंस देने वाले वीके बंसल की जिंदगी से जुड़े अनछुए पहलू और उनके छात्रों की राय।

कोटाSep 05, 2017 / 04:01 pm

​Vineet singh

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जवानी के उस मोड़ पर जब जिंदगी सबसे हसीन होती है…कदम ही साथ छोड़ दें तो लोग जीने तक से इन्कार कर देते हैं, लेकिन इस बुंदेले ने कुदरत की बेरुखी को भी रोशनी बिखेरने का जरिया बना डाला। एक लालटेन, एक मेज और एक बच्चे के साथ चल पड़ा सफलताओं की नई इबारत लिखने। इस शख्स ने कोटा कोचिंग की नींव ही नहीं रखी, बल्कि पहला आईआईटियंस और आईआईटी-जेईई का पहला टॉपर देकर सफलताओं का ऐसा चस्का लगाया जो ढ़ाई दशक बाद भी जारी है।
 

एक गुरु के लिए इससे बड़ा तोहफा और क्या होगा कि उनका छात्र ही उनकी जिंदगी पर किताब लिखे। आईआईटियंस सचिन झा ने अपने शिक्षक यानि कोचिंग गुरू वीके बंसल की जिंदगी के हर पहलू को सहेज कर एक किताब लिखी और उसे नाम दिया वीके बंसल्स जर्नी, फ्रॉम लैन्टर्न टू लाइट हाउस। वीके बंसल के झांसी में जन्म लेने के बाद लखनऊ में पढ़ाई और फिर कोटा में नौकरी की शुरुआत करने से लेकर शादी के कुछ साल बाद ही पैरों का साथ छोड़ देना और उसके बाद शुरू हुए संघर्ष से कोटा कोचिंग का जन्म और सफलताओं के निर्बाध दौर की कहानी इस किताब में बखूबी दर्ज है।
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एक सबक है इनकी जिंदगी

“पिताजी सभी के घर रोशन हैं, हमारे घर में अंधेरा क्यों ? मैं रात को ज्यादा नहीं पढ़ पाता हूं।” मुश्किलें बया करते इस बच्चे का सवाल जब पिता ने सुना तो रिएक्ट करने के बजाय उन्होंने ऐसा जवाब दिया जिसने जिंदगी ही बदल दी… पिता बोले ‘बेटा तुम पढ़ोगे तो घर में लाइट भी होगी।’ कक्षा 6 के इस वाकये को कोई और होता तो भूल भी जाता, लेकिन वीके बंसल नहीं भूले और उन्होंने ना सिर्फ अपने घर में रोशनी की, बल्कि सैकड़ों बच्चों को आईआईटियन बनाकर उनका घर-आंगन भी चमका डाला।
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जिंदगी धोखे देते गई और वीके ‘सर’ बनते गए

पिता के जवाब सुनने के बाद वीके बंसल ने इतनी मेहनत की कि कक्षा 6 में टॉपर बन गए। उनके अंक देखकर सरकार ने 372 रुपए की स्कॉलरशिप दी। जिससे घर में लाइट आई। पंखा लगा और बल्ब चमका। वर्ष 1971 में बीएचयू से मैकेनिकल ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने कोटा की जेके सिंथेटिक में काम शुरू कर दिया, लेकिन किस्मत ने उन्हें यहां भी धोखा दे दिया और लाइलाज बीमारी का शिकार हो गए। लाख कोशिशों के बावजूद शरीर के अंगों ने एक-एक कर काम करना बंद कर दिया, लेकिन वीके बंसल लड़ने से पीछे नहीं हटे। चलना फिरना बंद हुआ तो उन्होंने 1981 में बच्चों को कोचिंग देना शुरू कर दिया और 1983 में बंसल क्लासेस की स्थापना कर सैकड़ों आईआईटियंस के साथ सबसे ज्यादा 6 आल इंडिया टॉपर दिए।
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जिसे हाथ लगाया हीरा बन गया

रेजोनेंस के प्रबंध निदेशक आरके वर्मा ने वीके बंसल से मिले पहले सबक को साझा करते हुए कहते हैं कि 5 मई 1995 के दिन फैकल्टी के तौर पर बंसल क्लासेज ज्वाइन की थी। कुछ दिन बाद ही बंसल सर ने अचानक बुलाया और फिजिक्स की डेली प्रॉब्लम प्रेक्टिस से एक सवाल हल करने को कहा। मैने कर दिया, लगा बात बन गई, लेकिन तब बंसल सर ने कहा कि शिक्षक को ज्ञान हो यह पहली जरूरत है, लेकिन उससे छात्र भी इस ज्ञान से वाकिफ हों तभी शिक्षा की सार्थकता है।
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उनके फार्मूले का कोई तोड़ नहीं

वॉल स्ट्रीट जनरल के कवर पेज पर जगह बना चुके वीके बंसल के फार्मूले का कोई तोड़ नहीं है। रेजोनेंस के प्रबंध निदेशक आरके वर्मा करते हैं कि कोटा के कोचिंग संस्थानों में डीपीपी से लेकर डेढ़ घंटे की क्लास तक का फार्मूला बंसल सर ने बनाया और आज सभी इसे फॉलो कर रहे हैं। इसका तोड़ कोई नहीं तलाश सका। कैरियर पाइंट के निदेशक ओम माहेश्वरी ने बताया कि 1992 में जब उन्होंने कोचिंग की शुरुआत की तो पहला फोन बंसल सर का ही आया और पूछा कि क्या पढ़ाओगे, तब से लेकर आज तक उनका मार्ग दर्शन मिल रहा है। मोशन के प्रबंध निदेशक नितिन विजय ने कहा कि वीके बंसल आईआईटियंस ही नहीं उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक भी तैयार करते हैं। मैं वहीं पढ़ा और यहीं से पढ़ाना सीखा।

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