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राजस्थान पर खतरनाक वायरस की काली छाया, हर दिन 3 लोगों का टूट रहा दम, दवाइयां भी बेअसर

सर्दी-जुकाम और बुखार जैसे मामूली लक्षण कब मौत की काली छाया बन जाएं, कहा नहीं जा सकता। खासतौर से हाड़ौती में स्वाइन फ्लू खुलकर मौत का खेल खेल रहा है।

कोटाMar 07, 2018 / 12:20 pm

​Zuber Khan

swine flu
सर्दी-जुकाम और बुखार जैसे मामूली लक्षण कब मौत की काली छाया बन जाएं, कहा नहीं जा सकता। खासतौर से हाड़ौती में स्वाइन फ्लू खुलकर मौत का खेल खेल रहा है। इस साल अभी तक 8 मौतें हो चुकी हैं। इनमें एक मौत सोमवार को ही हुई, जबकि पांच नए रोगी मिले। पिछले साल 26 जानें इस खतरनाक बीमारी की वजह से जा चुकी हैं।
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जनवरी 2017 से अभी तक इस बीमारी के करीब 350 रोगी सामने आ चुके हैं। राज्य भर में पिछले डेढ़ महीने में स्वाइन फ्लू से 90 से अधिक मौतें हो चुकी हैं और 1000 से अधिक पॉजीटिव रोगी सामने आ चुके हैं। स्वाइन फ्लू के वायरस एच-एन-1 की वजह से प्रदेश में प्रतिदिन दो से तीन रोगी दम तोड़ रहे हैं।
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चिकित्सा विभाग डॉक्टरी भाषा में इसका कारण बता रहा है कि बीते सालों में इनफ्लुएंजा टाइप के वायरस ने अपने आप को बदल लिया है। ऐसे में दवाइयां कारगार साबित नहीं हो रही हैं। कारण कुछ भी हो, आमजन के स्वास्थ्य की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है। स्वाइन फ्लू एक-एक कर मरीजों को मौत की नींद सुला रहा है और सरकारी तंत्र कुछ नहीं कर पा रहा है। मरीजों की मौतों के कई मामलों तो चिकित्सा विभाग की लापरवाही साफ नजर आ रही है। राज्यपाल की जांच रिपोर्ट हालिया उदाहरण है। पिछले साल एक विधायक की इस बीमारी से मौत हुई और एक विधायक पॉजीटिव पाई गई। इन बदले हालात के साथ ही चिकित्सा विभाग भी मरीजों की मौत के बाद सर्वे करने या मौत के आंकड़े जुटाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहा है।
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चिकित्सा विभाग का तर्क

सात साल बाद इनफ्लुएंजा टाइप के इस वायरस ने अपने आप को बदल लिया है। वर्ष 2009 से लेकर 2016 तक एच-एन-1 का रूप कैलिफोर्निया स्ट्रेन के नाम से जाना जाता था, जो अब अपने डीएनए में बदलाव कर नया बन गया है। इसको मिशिगन स्ट्रेन के नाम से जाना जा रहा है। वर्ष 2017 के अंतिम महीनों और अब वर्ष 2018 में भी मिशिगन स्ट्रेन लोगों को अपना शिकार बना रहा है। यह ऐसा ही है जैसा वर्ष 2009 और 2010 में देखने को मिला था।
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कैलिफोर्निया स्ट्रेन बदला मिशिगन स्ट्रेन में
इस साल पहली बार ऐसा हुआ कि स्वाइन फ्लू का वायरस एच-1एन-1 बरसात के मौसम में भी जिंदा रह गया। जुलाई से लेकर सितम्बर तक बरसात के मौसम में भी स्वाइन फ्लू ने लोगों को शिकार बनाया। वैज्ञानिकों के अनुसार म्यूटाजेनेसिस के जरिए वायरस के जीन में हल्का बदलाव आ गया, जिसने उसे बरसात में मरने से बचाया। इस बार का वायरस मिशिगन स्ट्रेन है जो 2009 के कैलियोफोर्नियां स्ट्रेन की तुलना में थोड़ा सा अलग है।
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वर्ष 2009 से स्वाइन फ्लू को देख रहे शहर के वरिष्ठ फिजिशियिन का कहना है कि वायरस हर साल एक महीने पहले सक्रिय हो रहा था। इस बार यह अवधि दो महीने हो गई। वायरस ने अपने आपको मौसम के अनुरूप ढाल लिया है। यही वजह है कि यह मिशिगन स्टे्रन लोगों पर थोड़ा भारी पड़ रहा है और लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं।

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