आत्मा के परियोजना निदेशक शंकरलाल मीणा ने बताया कि परम्परागत तरीके की बजाय कोटा में पान की संरक्षित खेती की जाएगी। इसके लिए अत्याधुनिक ग्रीन हाउस, पॉली हाउस और सैटनेट पॉली हाउस तैयार कर पान के खेत यानी बेरजा बनाए जाएंगे। करौली और चित्तौड़ से मंगाई गई कलमों को रोपने से पहले बेरजा में पारी बनाई जाएंगी। हर पारी में लोहे के करीब दस हैंगल खड़े कर उसके ऊपर घासफूस के छप्परों का कवर खड़ा किया जाएगा। ताकि पान की फसल को तेज धूप से बचाकर संतुलित छांव देकर तरीके से पोषित किया जा सके।
एक बेरजा का आकार एक से पांच बीघा का होता है और उसके ऊपरी परत पर चिकनी मिट्टी डाली जाती है, ताकि बानी जमा होने के बजाय बह जाए। पानी में नमी बनी रहना जरूरी है। इसलिए परम्परागत तरीके से होने वाली पान की खेती में मटके में छेद कर उससे दिन में पांच बार पानी देना पड़ता है। कोटा में होने वाली संरक्षित खेती आधुनिक होगी और मटके की बजाय यहां बूंद-बूंद पानी पद्धति से इसकी सिंचाई की जाएगी। इस दौरान निकलने वाले अंकुर (नागरबेल) को बेरजा में लगाए गए सरकंडे के सहारे ऊपर चढ़ाया जाएगा। जिस पर पान के पत्ते उगेंगे। नगरबेल पर दो पान के पत्ते छोड़कर बाकी उगे पत्तों को तोड़कर बिक्री के लिए भेज दिया जाता है।
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पान की खेती को पाला और लू से सबसे ज्यादा नुकसान होता है, लेकिन कोटा में पाले की स्थिति सालों में कभी कभार ही बनती है, जबकि अत्याधुनिक पॉली हाउस सिस्टम के जरिए पान के पत्तों को लू से आसानी से बचाया जा सकता है। उपजाऊ मिट्टी होने से पैदावार भी अच्छी मिलने की उम्मीद है।
परियोजना निदेशक ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के जरिए कोटा और आसपास के जिलों में कहां-कहां पान की खेती हो सकती है, इसकी संभावनाएं तलाशी जाएंगी। इसके लिए कोटा ही नहीं देशभर के पान खेती विशेषज्ञों से भी सलाह और सहायता ली जाएगी। पान की खेती के लिए युवाओं को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार 70 फीसदी तक सब्सिडी देने का प्रस्ताव ला चुकी है। इससे हाड़ौती के किसानों को नकदी फसल का नया और बेहतर विकल्प मिल सकेगा।
उद्यानिकी एवं वानिकी विशेषज्ञ कोटा में पान की जैविक खेती करने की कोशिश में जुटे हैं। इसकी वजह से उन्हें स्थानीय स्तर पर बड़ा बाजार उपलब्ध हो सकेगा। इसके साथ ही अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादों की फेहरिस्त में नाम दर्ज करा अच्छी कीमतें हासिल कर सकेंगे। पान की अच्छी पैदावार के लिए जैविक खाद के तौर पर नीम, सरसों व तिल आदि की खली के अलावा जौ, उड़द, दूध, दही व म_े का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इससे पान की मिठास और पत्ते की चिकनाहट बढ़ती है। कोटा का जैविक पान करकरेपन के साथ ही सुगंध और जायके के साथ आसानी से मुंह में घुल जाएगा।