नयापुरा थाने से महज 50 मीटर की दूरी पर स्थित गोल्ड लोन कम्पनी के कार्यालय से 4 हथियारबंद नकाबपोश बदमाश 22 जनवरी को दिनदहाड़े 27 किलो सोना लूटकर ले गए थे। कम्पनी के प्रबंधक की रिपोर्ट पर मुकदमा दर्ज कर एसपी अंशुमान भौमिया ने 20 से अधिक पुलिस टीमें गठित की थी। तकनीकी और स्पेशल टीमें अपने-अपने स्तर पर काम कर रही थी। कोटा में पुलिस को लुटेरों के ठहरने के स्थानों से उनके बिहार व यूपी की गैंग के होने के पुख्ता सबूत मिले थे।
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लुटेरों की तलाश में कोटा से टीमें 6 बड़े राज्यों में भेजी गई थी। जिनमें से एक टीम बदमाशों का सहयोग करने वाले गैंग के दो बदमाशों गुलाब सिंह व रणवीर सिंह को 22 फरवरी को दिल्ली से गिरफ्तार कर कोटा लाई थी। वहीं एक टीम बिहार भेजी गई थी। उद्योग नगर सीआई लोकेन्द्र पालीवाल व बोरखेड़ा सीआई महावीर सिंह के नेतृत्व में 6 सदस्यीय टीम 27 जनवरी को कोटा से बिहार के लिए रवाना हुई थी। स्वयं के वाहन से गई टीम करीब 34 दिन तक बिहार और यूपी में रही। इस दौरान टीम ने पटना व हाजीपुर समेत करीब आधा बिहार छान मारा।
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टीम ने सबसे पहले तो बिहार में प्रवेश करते ही स्थानीय दिखने के लिए अपना लुक बदला। पुलिस के वेश से विपरीत बदमाशों का वेश धारण किया। सभी ने दाढ़ी बढ़ाई, पहनावा भी उसी तरह का किया। कई बड़े बदमाशों के नाम पता किए। लोगों से मिलने-जुलने पर वहां की भाषा के कुछ शब्द सीखे। लोगों के पूछने पर कि किससे मिलना है तो उन बड़े बदमाशों के नाम बता देते थे।
लुटेरों के घरों और उनके छिपने के संभावित ठिकानों का निगरानी रखने के लिए उसी वेश में उनके आस-पास ही रहे। टीम सदस्यों का कहना है कि इतने दिन तक सावधानी से निगरानी रखने के बाद भी बदमाश उन जगहों पर नहीं आए। हालांकि बदमाश उनके हाथ नहीं लगे लेकिन वे इस दौरान उनसे संबंधित इतनी अधिक जानकारी व सामग्री जुटाकर लाए हैं। जिससे पुलिस की काफी मदद मिलेगी।
भाषा और पर्सनल्टी से पहचाान लेते हैं लोग टीम सदस्यों ने बताया कि बिहार में जाने पर उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती ही स्थानीय भाषा और पर्सनल्टी की रही। किसी से भी बात करने पर वह पहचान लेते थे कि यह व्यक्ति स्थानीय नहीं है। साथ ही पर्सनल्टी भी राजस्थान के लोगों की अलग ही नजर आती है। वहां के लोग कुछ सांवले और नाटे कद के हैं। जबकि वे सभी लोग गोरे रंग के और हष्ट-पुष्ट थे। इसके लिए उन्होंने स्वयं को उसी माहौल में ढालने का प्रयास किया।
टीम सदस्यों ने बताया कि बिहार में रहने के दौरान वहां की स्थानीय पुलिस से कम सम्पर्क किया और उनका सहयोग भी कम लिया। उच्चाधिकारियों के स्तर पर ही जितनी जरूरत होती थी उतना और सीमित अधिकािरयों से ही सहयोग लिया। सदस्यों का कहना है कि हालाकि वहां पुलिस के पास संसाधन कम हैं लेकिन जिस तरह की खराब इमेज वहां की पुलिस की सुनी थी वैसी दिखी नहीं। रात के समय घूमने पर भी उन्हें किसी ने टोका तक नहीं। कोटा से जिस गाड़ी में गए थे उसका नमबर भी बदल लिया था।