रिवर फ्रन्ट को पर्यावरण के लिए खतरा माना है। रिवर फ्रंट के मामले में अजमेर के द्रुपद मलिक, अशोक मलिक व गिरिराज अग्रवाल ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी है। रिवर फ्रन्ट निर्माण से जुड़ी एजेन्सियों को भी नोटिस दिया गया है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी दिया था आदेश
मामले में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 1 जुलाई, 2023 को राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि चंबल रिवर फ्रंट एरिया में गैरवानिकी गतिविधियां बिना पर्यावरण स्वीकृति लिए की जा रही हैं। इन्हें रोका जाए व ऐसी गतिविधियां करने वाले अफसरों, कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए, लेकिन, कोटा यूआईटी और राज्य सरकार के अफसरों ने मामले में कोई ध्यान नहीं दिया।
यह की थी शिकायत
आवेदक ने शिकायत की थी कि रिवर फ्रन्ट राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य के पास में है। जिसे पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) की मंजूरी के बिना योजना पर कार्य शुरू कर दिया। यह अभयारण्य में पाई जाने वाली प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करती है, साथ ही नदी के किनारों का व्यवसायीकरण भी किया है, जिससे जल के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। नदी के किनारे उच्च तीव्रता वाली रोशनी और फव्वारों से नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
आम लोगों के लिए खतरनाक बताया
निर्देश में स्पष्ट किया गया है कि यह परियोजना सार्वजनिक सुरक्षा संबंधी चिंताओं को भी उठाती है, विशेष रूप से इसकी स्थिति कोटा बैराज से शुरू होने के कारण, जहां अक्सर पानी छोड़ा जाता है, जिससे बाढ़ का खतरा होता है। ऐसे समय में यहां आने वालों के लिए खतरे के अंदेशे को नकारा नहीं जा सकता।
इन कानूनों का उल्लंघन किया गया रिवर फ्रंट में
1 पर्यावरण (संरक्षण) की धारा 7 का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। ) अधिनियम, 1986.
2 वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 29 और 35 का उल्लंघन क
3 जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 24(1)(बी) का उल्लंघन है