शोध में यह आया सामने
श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. केके डंग ने बताया कि देश में ग्रामीण परिवेश व शहरों में सीओपीडी रोगियों की संख्या 5.6% व 11.4% है। वायु प्रदूषण भी सीओपीडी मृत्यु दर और रुग्णता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अनुमान के अनुसार चूल्हे पर खाना पकाने और वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से देश में सालाना 9.25 लाख मौतें होती हैं। सीओपीडी में उच्चतम मृत्यु दर एक लाख में 111 राजस्थान और न्यूनतम मृत्युदर एक लाख में 18 नागालैंड में दर्ज की गई है।
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निवारण
मरीज को इन्हेलर्स और नेबुलाइजर दिए जाते हैं, कई बार कुछ दवाइयां भी दी जाती हैं। इनहेलर या पंप सबसे सुरक्षित एवं कारगर उपाय हैं।लक्षण
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40 की उम्र के बाद करती है बीमार
कोटा मेडिकल कॉलेज के श्वांस एवं अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. विनोद जांगिड़ बताते है कि सीओपीडी सामान्यत: 40 वर्ष की उम्र में होती है, लेकिन कुछ कम उम्र के लोगों में भी देखी गई है। सीओपीडी दो तरीकों से फेफड़ों को प्रभावित करती है। पहला फेफड़ों में छोटी श्वांस नालियों की दीवारों का नष्ट करना और दूसरा क्रोनिक ब्रोंकाइटिस जिसमें श्वास की नालियां सूज जाती है। इससे श्वांस लेने में रुकावट होने लगती है।