राजस्थान का अनोखा मंदिर: महाराणा खुद को मेवाड़ के राजा एकलिंगनाथ का दीवान मानकर संभालते थे यहां का शासन
किंवदंती के अनुसार भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद विदाई की बेला थी। हनुमानजी व महादेव पृथ्वी भ्रमण की चर्चा कर रहे थे। विभीषण ने यह बात सुनी तो बोले कि भगवान राम ने उन्हें कभी सेवा का अवसर नहीं दिया। मैं आपको पृथ्वी का भ्रमण करवाना चाहता हूं। इस पर महादेव व हनुमानजी ने शर्त रखी कि जहां कांवड़ धरा पर टिक जाएगा, वहीं वे ठहर जाएंगे।
कांवड़ में एक तरफ महादेव व दूसरी तरफ हनुमानजी विराजमान हो गए। यात्रा चलती रही लेकिन कैथून में विभीषण को रुकना पड़ा। शर्त के अनुसार कांवड़ के दोनों पलड़े जहां टिके वहीं महादेव व हनुमानजी विराजित हो गए।
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3 मंदिर, दूरी बराबर
कांवड़ में जिधर शिव विराजे थे, वह पलड़ा चारचौमा गांव में टिका, वहां चारचौमा शिव मंदिर है। कावड़ की धूरी का दूसरा पलड़ा रंगबाड़ी में टिका और यह स्थान रंगबाड़ी बालाजी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। कैथून में विभीषण का मंदिर है, जहां से ये दोनों मंदिर समान दूरी पर हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा का केवल शीर्ष नजर आता है। मंदिर के सामने कुंड है, जहां विभीषण के पैर नजर आते हैं।