मध्य प्रदेश ने निभाया अपना वादा अब राजस्थान की बारी
सरकार की ओर से लाए जा रहे इस काले कानून के खिलाफ सोमवार को अदालत परिसर में परिषद सभागार में आयोजित टॉक शो में वकीलों ने इस कानून पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। टॉक शो में अभिभाषकों ने ‘पत्रिका’ के ‘जब तक काला, तब तक ताला’ शीर्षक से प्रकाशित अग्रलेख की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसमें बेबाकी से काले कानून की खामियों को उजागर किया है। टॉक शो में परिषद के महासचिव समेत एक दर्जन से अधिक वरिष्ठ वकीलों ने विचार व्यक्त किए।रिश्वत लेकर भागे हैड कांस्टेबल ने लगाई साढ़े तीन माह तक दौड़ जब थका तो कर दिया सरेण्डर
मंशा में ही खोट पूर्व अध्यक्ष रघुनंदन गौतम का कहना है कि सरकार भ्रष्ट लोकसेवकों व राजनेताओं को बचाने के लिए कानून ला रही, जबकि इसकी कोई जरुरत नहीं है। भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ 6 महीने तक सरकार मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देगी, तब तक आरोपित सभी सबूत नष्ट कर देगा। सरकार की मंशा सही नहीं है।भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला
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न्यायपालिका पर ही प्रश्नचिह्न
वरिष्ठ अधिवक्ता सलीम खान का कहना है कि सरकार ने पहले अध्यादेश लाकर, फिर प्रवर समिति को सौंप कर गलती की है। मंशा में खोट नजर आ रहा। सरकार दागियों को बचाने के लिए न्यायपालिका की कार्यवाही तक पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। सरकार को इसे वापस लेना ही होगा। हौसले होंगे बुलंद पूर्व उपाध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा का कहना है कि अध्यादेश में दागी लोकसेवकों के नाम व पहचान उजागर करने पाबंदी लगाई गई है। इससे भ्रष्टों के हौसले बुलंद होंगे। उनके खिलाफ मीडिया में भी खबर प्रकाशित नहीं की जा सकेगी। ऐसा करने पर सजा का प्रावधान चौथे स्तम्भ को बांधने का प्रयास है।
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रामगोपाल चतुर्वेदी का कहना है कि पुलिस को अधिक अधिकार अध्यादेश में न्यायपालिका की शक्ति को तो सीमित कर पुलिस को अधिक अधिकार दिए गए। दागी लोक सेवकों के खिलाफ अदालत सरकार की अनुमति के बिना मुकदमा दर्ज का आदेश नहीं दे सकती, जबकि पुलिस को बिना मंजूरी केस दर्ज करने का अधिकार दिया है।सरकार शहराें को स्मार्ट सिटी में बदल रही है, इधर यह स्मार्ट सिटी गांव में बदलने को तत्पर है
जनता को गुमराह करने की कोशिश वरिष्ठ अधिवक्ता राम स्वरूप ऋषि का कहना है कि सरकार ने मंशा जाहिर कर दी कि वह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना चाहती है। चौतरफा विरोध होने पर किरकिरी हुई तो इसे प्रवर समिति को सौंपा, लेकिन यह भी जनता को गुमराह करने का ही प्रयास है। हकीकत में अध्यादेश लागू ही है।