आबिद और उनका पूरा परिवार इस मुश्किल हाल में भीलवाड़ा से लेकर चित्तौड़ तक के अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। सरकारी ही नहीं सात निजी अस्पतालों ने भी उनके लिए दरवाजे नहीं खोले। इसी दौरान वे गोमाबाई नेत्र चिकित्सालय नीमच पहुंचे। जहां से उन्हें कोटा जाने को कहा गया, लेकिन कोरोना वायरस की भयावहता को देखते हुए कई चिकित्सकों ने मरीज को कोटा बुलाने से ही पल्ला झाड़ लिया।
बाद में परिचितों ने कोटा के नेत्र विशेषज्ञ डॉ. सुधीर गुप्ता से संपर्क साधा। डॉ. गुप्ता उस इलाके में नेत्र शिविर लगाते रहते हैं। एेसे में डॉ. गुप्ता ने भीलवाड़ा के मरीज को कोटा बुलाने के बजाए बिजौलिया जाकर ऑपरेशन करने का फैसला किया। वे सपोर्टिंग स्टाफ हर्षाली श्रीवास्तव, सीताराम पंकज, गिर्राज गोचर, जीतू और शाहरुख मिर्जा के साथ बुधवार तड़के ही मैनाल के पास जोगणिया माताजी पहुंच गए, जहां उन्होंने आबिद की आंख का ऑपरेशन कर उसकी रोशनी जाने से बचा ली।
बड़ी बात यह है कि उन्होंने आबिद से अपनी और स्टाफ की फीस लेना तो दूर ऑपरेशन पर आया खर्च तक नहीं लिया। डॉ. गुप्ता ने बताया कि ऐसे मामले में २४ घंटे के अंदर ऑपरेशन न होने पर आंख की रोशनी जा सकती है, लेकिन खुशी है कि आबिद की आंख बचा ली।