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राजस्थान पत्रिका टीम और ‘जिंदगी एक प्राथमिकताÓ फाउंडेशन की डायरेक्टर ईशा यादव सोमवार को उन हॉस्टल्स और पीजी के हालात देखने पहुंचे जहां बीते एक महीने में बच्चों ने आत्महत्या की। स्थितियां भयावह ही नजर आईं। हादसों के बाद भी इन हॉस्टल्स में सुरक्षा व्यवस्था के कोई इंतजाम नहीं किए गए। न तो गार्ड तैनात मिला और न ही फुल टाइम वार्डन। नाइट अटेंडेंस, सीसीटीवी कैमरे और फायर सेफ्टी के नाम पर महज खानापूर्ति है।
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कोचिंग छात्रों की अटेंडेंस अब भी रजिस्टर में ही दर्ज की जा रही और बच्चे ही अपनी मर्जी से आने-जाने का समय दर्ज कर रहे हैं। यही नहीं, कमरे की हालत बदतर है। बच्चे मानो ‘पिंजड़ोंÓ में कैद हैं। कहने के लिए तो ये कमरे वातानुकूलित (एसी) सुविधा से लैस हैं, लेकिन हालत यह कि सामान रखने के बाद दो बच्चे एक साथ बैठ भी नहीं सकते। पूरी तरह से पैक इन कमरों में हवा और रोशनी तो दूर, बच्चों की आवाज तक बाहर नहीं आ पाती।
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सुरक्षा व्यवस्था
वार्डन हॉस्टल से नदारद थे। खुद को पार्ट टाइम वार्डन और सिक्योरिटी गार्ड बताने वाला व्यक्ति मिला। उसने बताया कि हॉस्टल में बायोमेट्रिक अटेंडेंस नहीं लगती। बच्चे जब भी हॉस्टल से बाहर जाते हैं और वापस लौटते हैं तो वे अपनी हाजिरी गेट पर रखे रजिस्टर में दर्ज करते हैं। इसके बाद जो बच्चे जब खाना खाने डाइनिंग हॉल में आते हैं तब उनकी अटेंडेंस दर्ज की जाती है। नाइट अटेंडेंस व्यवस्था नहीं है।
सीसीटीवी
हॉस्टल में 16 सीसीटीवी कैमरे लगे होने का दावा किया गया, सिर्फ 10 काम करते मिले। अंदर सिर्फ गैलरी में कैमरे थे। सीढिय़ों से आने-जाने वाले इन कैमरों की पहुंच में नहीं थे।
कमरे
फुल एसी इस हॉस्टल कमरे इतने छोटे थे कि एक बेड, अलमारी और कुर्सी मेज रखने के बाद दो लोगों के खड़े होने की जगह तक नहीं। खिड़की तो थी, लेकिन एयरटाइट ग्लास अंदर से लॉक। हवा-रोशनी का कोई इंतजाम नहीं। बच्चा अंदर से आवाज लगाए तो बाहर कोई नहीं सुन सकता। एसी के बावजूद कमरे में पंखा था, लेकिन उसमें एंटी सुसाइड रॉड नहीं लगे थे।