डोर: पतंग उडाने के लिए जिस धागे का इस्तेमाल किया जाता है।
तंग : पतंग को उडाने के लिए पहले पतंग में उपर व नीचे छेद कर उसमें धागा पिरोया जाता है और बांध दिया जाता है। यह पतंग को हवा में पकड़ने के लिए रखा जाता है। इसकी गुणवत्ता पतंग के वायुगतिकी को परिभाषित करता है। इसके सही बांधने पर ही पतंग अच्छी उड़ती है। यह गलत बंध जाए तो पतंग का हवा में उड़ने की चाल ढाल बदल जाती है। पतंग में उपर की तरफ ज्यादा गांठ लगा दें तो पतंग उडते समय हल्की महसूस होती है और अगर ज्यादा गांठे नीचे की तरफ लगा दे तो यह भारी महसूस होती है। इसलिए इसका सही अनुपात में बांधा जाना अत्यंत आवश्यक है।
कन्नी/जोते : पतंग एक वायुगतिक रूप से एक ही दिशा में जाती है या तिरछी होती है तो यह कन्नी कट कहलाती है।
लिप्पु: पतंग का प्रकार, जो पतंग डिजाइन में ढिली होती है वह तेज हवा के कारण थोडी सिमट सी जाती है।
मांझा: पेंच लडाने के लिए कांच या अन्य चीजों से तैयार धागा। जिसमें बहुत तेज धार होती है इससे सावधानी से इस्तेमाल करना होता है अन्यथा इससे उंगली भी कट जाती है।
गिरगडी /चरखी: डोर व मांझा लपेटने के लिए एक यंत्र जिससे डोर व मांझा तुरंत समेट लिया जाता है और इस पर इकट्ठा कर लिया जाता है।
ढील: पतंग को आगे पहुंचाने के लिए चरखी से डोर देना।
सद्दा : बच्चों की अंगुली कटने से बचाने के लिए विशेष रूप से बनाया धागा जिसमें कांच का लेप नहीं होता।
पेच: एक पतंग से दूसरी पतंग की प्रतिस्पर्धा।
उपल्ले लगना: पतंग को सामान्य उंचाई से बहुत उपर उठाना।
आँख कट : एक पतंग जिसमें दो बिंदु होते हैं जो आंख के समान दिखते है।
दरवाजा कट: एक पतंग जिसमें दाई और बांई ओर एक कागज की पट्टी होती है।
पिन्नी कट: एक पतंग जो प्लास्टिक शीट की बनी होती है।
माथा कट: विकर्णों से दो कागजात में बनाया पतंग।
चाँद तारा: एक पतंग जिस पर चांद और तारे बने हों।
गोला: एक पतंग जो एक ही रंग के सादा कागज से बनी हो जिसमें कोई डिजाइन न हो और जिसमें नीचे की और एक त्रिभुज की आकृति का कागज लगा हो।
छुट्टी देना : पतंग को आसानी से हवा में उडाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पतंग को 20-30 मीटर की दूरी पर ले जा कर हवा में उछालना।