इसी दौरान उन्होंने वर्ष 2014 में कोटा में ‘द लास्ट पेज ऑफ नोटबुक’ प्रोजेक्ट किया था। उन्होंने अलग-अलग कोचिंग और हॉस्टल्स में जाकर बच्चों की नोटबुक के लास्ट पन्ने टटोले। लास्ट पन्नों की फोटोज लेकर बच्चों के मनोभावों को समझने की कोशिश की। बच्चों के मन में दबी इच्छाओं को महसूस किया। अभय सिंह कहते हैं, बच्चे नोटबुक में आगे के पन्नों पर सब्जेक्ट से संबंधित मेन लाइव स्टोरी लिखते हैं। जबकि लास्ट पन्ने पर सबसे महत्वपूर्ण बात लिखते हैं। अपने मन की बात बयां करते हैं।
लास्ट पन्नों पर पढ़ी मन में दबी इच्छाएं
कोटा में इस डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफी रिसर्च के दौरान उन्होंने बच्चों के दिल की बात जानी। वे क्या करना चाहते हैं, उनके लास्ट पेज को पढ़कर बखूबी जाना। करीब एक महीने में उन्होंने यह प्रोजेक्ट पूरा कर आइडीसी में सब्मिट किया था। साथ ही कोचिंग और हॉस्टल संचालकों को भी अपने रिसर्च प्रोजेक्ट का ‘सार’ बताया था। ताकि वे भी इस अनुरूप अपना ‘सिस्टम’ तैयार कर सके।
फर्स्ट अटेप्ट में की थी जेईई क्रेक
मूलत: हरियाणा के झज्जर जिले के अभय सिंह के माता-पिता उन्हें कोटा में जेईई की कोचिंग करवाना चाहते थे, लेकिन वे दिल्ली पहुंच गए। फिर उन्होंने जेईई में 731वीं रैंक के साथ आइआइटी बॉम्बे में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने डिजाइनिंग में मास्टर डिग्री की। अभय ने इसके अलावा भी केंद्र सरकार की ओर से प्रायोजित कई प्रोजेक्ट किए हैं।
कोचिंग में पढ़ाया भी
साइंस से संन्यास तक का सफर तय कर चुके अभय ने करीब एक साल तक कोचिंग में पढ़ाया भी है। खुद को ‘आय एम नो-बॉडी’ कहने वाले अभय ने कनाडा की एक कंपनी में लाखों रुपए महीना की नौकरी की। उसके बाद ऐप, वेबसाइट और लोर डिजाइन का काम किया। ट्रेवल फोटोग्राफी की, देश के प्रतिष्ठित फोटोग्राफी इंस्टीट्यूट से इसका कोर्स भी किया। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री और फिक्शन फिल्में भी बनाई हैं।