आखिर देखते भी कैसे? जहां दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष हो रहा हो, छत के लिए जद्दोजहद चल रही हो वहां किताब, कॉपियों, ड्रेस और फीस के पैसे भला जुटाए भी कैसे जा सकते। लेकिन अब ऐसे बच्चो की
शिक्षा को लेकर युवा आगे आये है ।
राजस्थान पत्रिका ने 20 सितंबर को
हनुमान गढ़ी में जमींदोज हो चुके मकानों के मलवे में अपना भविष्य तलाशते बच्चों की खबर ‘बाढ़ के कहर से बचे तो अब मलवे में फंसा
नौनिहालों का भविष्य Ó खबर प्रकाशित की थी। जिससे प्रभावित होकर शहर के कुछ युवाओं ने जिला प्रशासन से इन बच्चों की मदद के लिए संपर्क साधा, लेकिन तमाम दफ्तरों और पटवारियों के चक्कर काटने के बावजूद आपदा से प्रभावित बच्चों की सूची नहीं मिल सकी।
आखिर में इन युवाओं ने सारथी एजुकेशन एडॉप्शन नाम से एक मंच तैयार किया और सभी ने एक-एक बस्ती में सर्वे करने की जिम्मेदारी संभाल ली। 250 से ज्यादा का छूटा स्कूल
सारथी अभियान की संयोजिका पूर्ति शर्मा और सह संयोजिका शालू सिंह बताती हैं कि बाढ़ प्रभावित बच्चों की पहचान करने के लिए 17 दिनों तक घर घर जाकर सर्वे किया। जिसमें 250 से ज्यादा ऐसे बच्चों की पहचान हुई जिनका बाढ़ से प्रभावित होने के कारण स्कूल छूट गया। अधिकांश बच्चे वह हैं जिनके मकान पूरी तरह से तबाह होने के साथ ही किताब कॉपियां ही नहीं, घर में रखा सारा सामान भी बह चुका है।
शालू सिंह बताती हैं कि हनुमान गढ़ी में 32, बापू नगर कच्ची बस्ती में 55, बीड़ के बालाजी में 67 और सिलिका के पीछे शमशान रोड़ इलाके में 12 बच्चों के साथ-साथ खंड गावड़ी और नंदा की बाड़ी इलाके में स्कूल छोडऩे वाले 90 से ज्यादा बच्चे मिल चुके हैं।
जलाएंगे शिक्षा का दीपक सारथी अभियान की संयजिका पूर्ति शर्मा कहती हैं कि एक भी बच्चे का स्कूल छूटा तो उन्हें असमाजिक गतिविधियों और बाल मजदूरी में फंसने से कोई नहीं रोक पाएगा। इसीलिए
दिवाली से पहले इन बच्चों को फिर से स्कूल तक पहुंचाने के लिए साल भर तक उनकी फीस भरने और किताब कॉपिया ही नहीं ड्रेस आदि का इंतजाम करने के लिए एजुकेशन एडॉप्शन अभियान छेड़ा है। जिसके जरिए एक सामर्थ्य व्यक्ति एक बच्चे को गोद लेकर उसकी साल भर की शिक्षा जिम्मा उठा रहा है।
खुशी की बात यह है कि अभी तक 30 लोग 42 बच्चों को
गोद ले चुके हैं। उम्मीद है कि जितने बच्चे चिन्हित किए गए हैं सभी के घरों में इस दिवाली शिक्षा का दीप जला सकेंगे।