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कोटा

कोरोना ने छीन ली दिहाडी मजदूरों की रोजी रोटी

कोरोना वायरस का असर भले ही अभी उच्च वर्ग में अधिक दिखाई दे रहा है, लेकिन इसकी मार निम्न तबके पर भी काफी अधिक पड रही है।

कोटाMar 21, 2020 / 07:13 pm

Suraksha Rajora

कोरोना ने छीन ली दिहाडी मजदूरों की रोजी रोटी

कोरोना ने छीन ली दिहाडी मजदूरों की रोजी रोटी

कोटा .राजस्थान मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से लोग मजदूरी और छोटी-मोटी नौकरी तलाशने आते हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप ने ऐसे लोगों की आजीविका के साधन को ही प्रभावित किया है। कोरोना रूपी महामारी के चलते दैनिक बाजार प्रभावित होने से काम की तलाश में यहां आने वाले लोग गांव लौटने को मजबूर हैं।
कोरोना वायरस का असर भले ही अभी उच्च वर्ग में अधिक दिखाई दे रहा है, लेकिन इसकी मार निम्न तबके पर भी काफी अधिक पड रही है। शहर में अधिकांश काम काज ठप पडा है और ऐसे में दिहाडी मजदूरों की रोजी रोटी संकट में आ गई है। उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इतने पैसे भी नहीं कि वे आराम से घर पर बैठे रह सकें। उनकी इस परेशानी पर अभी तक ना तो सरकार और ना प्रशासन की नजर है। कोरो ना वायरस के संक्रमण से शिक्षा नगरी की फिज़ा भी बदल गई।
कोटा में अनेक स्थानों पर मजदूरों का जमावडा सुबह से ही लगने लगता है। खासतौर से केशवपुरा, सूरजपोल गेट, भीम गंज मंडी, गोबरिया बावडी, दादाबाड़ी इलाके में मजदूरों की मंडी लगती है। जहां दिहाडी मजदूर एकत्र होते हैं और वहां से उन्हें विभिन्न काम के लिए ठेकेदार ले जाते हैंं। पिछले कुछ दिनों से कोरोना के हमले के बाद से ही शहर में अधिकांश काम बंद हो गए हैं। जगह जगह चल रहे निर्माण संबंधी सरकारी कामकाज भी बंद पड़ा है। ऐसे में सुबह यहां मजदूर एकत्र तो होते हैं, लेकिन इक्का दुक्का मजदूरों को ही काम मिल पाता है। बाकी निराश हो कर लौट जाते हैं।
केशवपुरा में सुबह मजदूरी के इंतजार में खड़े मामा भील मजदूर पैमा ने बताया कि पहले तो काफी लोग आते थे। अब मजदूरी मिलती नहीं है ऐसे में हम यहां घंटे दो घंटे बिगाड कर चले जाते हैं। पैमा से बात के दौरान ही अन्य मजदूर भी एकत्र हो गए। उनका कहना था रोजाना जितना कमाते हैं, उससे ही घर चलता है। जब दो चार दिन तक काम नहीं मिलता तो सोचो पेट कैसे पालेंगे। हमारी इस परेशानी पर भी सरकार को सोचना चाहिए।
सूरज पोल गेट के बाहर भी यही स्थति देखने को मिली। कोरो ना वायरस के चलते यहां वैसे ज्यादा मजदूरों कि भीड़ नहीं थी लेकिन जो मजदूर नजर आए हाथ पर हाथ धरे बैठे नजर आए। रघु ने बताया कि जो मजदूरी आती है उसी से रोज खाना बनता है, लेकिन अब तो दिहाड़ी मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो रहा है।

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