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कोटा

बच्चों को बताएंगे कैसे किया कारगिल फतह

26 को कारगिल विजय दिवस पर कार्यक्रम
 

कोटाJul 24, 2018 / 08:39 pm

shailendra tiwari

kota news

बच्चों को बताएंगे कैसे किया कारगिल फतह

कोटा. नगर विकास न्यास के बालाजी मार्केट स्थित ऑडिटोरियम में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर विभिन्न आयोजन होंगे। कर्नल पीयूष अग्रवाल ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि कार्यक्रम सुबह 9.30 बजे शुरू होगा। युद्ध का हिस्सा रहे कर्नल पीयूष ने बताया कि कार्यक्रम में 1200 से अधिक विद्यार्थी भाग लेंगे। विद्यार्थियों को बताया जाएगा कि यह युद्ध कैसे और किन परिस्थितियों में लड़ा गया और किस तरह से विजय हांसिल की। अग्रवाल ने बताया कि युद्ध में 527 सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी व 1363 घायल हुए थे। बच्चों व उपस्थित लोगों को डेमो भी दिखाया जाएगा। कार्यक्रम में योद्धा अपने संस्मरण साझा करेंगे। ब्रिगेडियर एन एस कपूर युद्ध की जानकारी देंगे। गांडीव के जनरल सुधीर बहल कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। अग्रवाल ने बताया कि उनके संयोजन में 2010 से कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा रहा है।
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वो शहादत! जो सेना, सरकार और देश को भी कर्जदार बना गई….

डिजिटल डेस्क@पत्रिका. करगिल विजय के 19 वर्ष पूरे होने को है। आज भी देश के वीर जवानों की शहादत की कहानियां हर भारतीय का सीना फख्र से चौड़ा कर देती हैं। हमारे जवानों ने देश की आन, बान और शान की खातिर सीने पर गोलियां खाई और शहादत के बाद अपने पीछे छोड़ गए बहादुरी की शौर्य गाथाएं।
19वें करगिल विजय दिवस से पूर्व पत्रिका डॉट कॉम पर हम आपको बता रहे हैं उन वीरों की कहानियां, जो देश के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गईं। यूं तो करगिल में शहीद होने वाले हर जवान की कहानी आपकी आंखे नम कर देती है लेकिन एक नाम ऐसा है जो कभी न भूलने वाली दास्तां बयान करता है।
एक ऐसी शहादत, जो जंग शुरू होने से पहले ही दी गई। ये कहानी है सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों की। नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम। सौरभ कालिया की उम्र उस वक्त 23 साल थी और अर्जुन राम की महज 18 साल थी।

वह दिन आएगा….
12 दिसंबर 1998 …पासिंग परेड का दिन। सभी जवान खुश नजर आ रहे थे, सभी ने मंच पर आकर अपनी फेयरवेल स्पीच दी फिर सौरभ के बोलने का नंबर आया, तो पहले वह कुछ देर शांत रहे। फिर कहा, आज मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं 4 जाट रेजिमेंट में शामिल हो गया हूं, लेकिन एक दिन आएगा जब यह यूनिट मुझ पर गर्व करेगीÓ।
15 मई की वह काली रात
सौरभ को भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। पहली पोस्टिंग 4 जाट रेजिमेंट के साथ करगिल सेक्टर में हुई थी। नौकरी को कुछ ही महीने हुए थे, वह करगिल में अपने साथियों के साथ अपनी पोस्ट पर मुस्तैद थे। इसी बीच 15 मई 1999 को उन्हें एक इनपुट मिला इसके तहत उन्हें जानकारी दी गई कि दुश्मन सेना के लोग भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रहे थे, यह इनपुट बहुत महत्वपूर्ण था। दुश्मन सेना के सैनिक किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते थे। सौरभ ने इसको गंभीरता से लेते हुए अपनी तफ्तीश शुरु कर दी। वह अपने पांच अन्य सैनिकों के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गए उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि दुश्मन कितनी संख्या में है। उन्हें तो बस अपने देश की चिंता सताये जा रही थी।

दुश्मन के हथियारों पर भारी पड़ा जज्बा
तेजी से उन तक पहुंचने के लिए सौरभ अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। वह जल्द ही वहां पहुंच गए जहां दुश्मन के होने की खबर थी। सौरभ को लगा कि उन्हें मिला इनपुट गलत हो सकता है, लेकिन दुश्मन की हलचल ने अपने होने पर मुहर लगा दी। वह तेजी से दुश्मन की ओर बढ़े, तभी दुश्मन ने उन पर हमला कर दिया।
दुश्मन तकरीबन 200 की संख्या में था। सौरभ ने स्थिति को समझते हुए तुरंत अपनी पोजीशन ले ली। दुश्मन सैनिकों के पास भारी मात्रा में हथियार थे। इधर सौरभ और उनके साथियों के पास ज्यादा हथियार नहीं थे । इस लिहाज से वह दुश्मन की तुलना में बहुत कमजोर थे, पर उनका ज़ज्बा दुश्मन के सारे हथियारों पर भारी था।

वह कभी पकड़े नहीं जाते, मगर…

सौरभ ने अपनी टीम के साथ तय किया कि वह आंखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करेंगे और उन्हें एक इंच भी आगे बढऩे नहीं देंगे। फिर तो सौरभ अपने साथियों के साथ दुश्मन की राह का कांटा बन कर खड़े रहे। उनकी रणनीतियों के सामने दुश्मन की बड़ी संख्या भी पानी मांगने लगी थी। हालांकि, दोनों तरफ की गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह ज़ख्मी जरूर हो गए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
दुश्मन बौखला चुका था, इसलिए उसने पीठ पर वार करने की योजना बनाई। इसमें वह सफल रहा। उसने चारों तरफ से सौरभ को उसकी टीम के साथ घेर लिया था। वह कभी दुश्मन के हाथ नहीं आते, लेकिन उनकी गोलियां और बारुद खत्म हो चुके थे। दुश्मन ने इसका फायदा उठाया और उन्हें बंदी बना लिया।
यातनाएं भी नहीं तोड़ पाईं हौंसला!
दुश्मन सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी जानना चाहता था, इसलिए उसने लगभग 22 दिनों तक अपनी हिरासत में रखा। उसकी लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी। इस कारण दुश्मन ने यातनाओं का दौर शुरु कर दिया।
सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया। उनकी आंखें निकाल ली गई, हड्डियां तोड़ दी गईं। यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे।
बावजूद इसके वह 23 वर्षीय सौरभ का हौसला नहीं तोड़ पाए थे। आखिरी वक्त तक उन्हें अपना देश याद रहा। उन्होंने सारे दर्द के हंसते-हंसते पी लिया। अंत में जब वह दर्द नहीं झेल सके तो उन्होंने मौत को गले लगा लिया।
वेतन भी नहीं ले पाए कैप्टन सौरभ कालिया
सैनिक की शहादत का कर्ज न कोई सेना उतार सकती है और न ही कोई देश। लेकिन सौरभ का एक और कर्ज हम पर उधार है है दरअसल सौरभ कालिया सेना में नियुक्ति के बाद अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे। पालमपुर के आईमा स्थित निवास में उनके परिजनों ने सौरभ से जुड़ी हर वस्तु सहेज कर रखी है, जो यहां आने-जाने वालों को सैनिकों की वीरता की याद दिलाती है।
कैप्टन सौरभ कालिया जैसे नायक सदियों में एक बार जन्म लेते है। देश के इस विरले अमर सपूत को शत्-शत् नमन

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