अभयारण्य क्षेत्र की परिधि में चम्बल नदी में केशवरायपाटन की तरफ बजरी का अवैध खनन शुरू हो जाता है, जिसमें रोटेदा, खेड़ली, डोलर, सोनगर, नोटाणा, घघटाना, कोटसुआं, बालापुरा, निमोदा, छीपरदा प्रमुख स्थान हैं। यहां खनन माफिया नाव से नदी में जाते हैं और बजरी निकालते हैं। नाव में भरी बजरी को किनारे पर लाकर ट्रॉली में भर दिया जाता है। इसके लिए 1500 रुपए प्रति ट्रॉली लेते हैं। ये बजरी बाजार में 4000 से 4500 रुपए प्रति ट्रॉली बेची जा रही है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, यहां दिनभर में 70 से 80 ट्रॉली रेत निकाली जा रही है।
चम्बल में 96 प्रजातियों के पौधे मिलते हैं। जीव-जंतुओं में मुख्यत: घडिय़ालों के अलावा गंगा नदी की डॉल्फिन (मंडरायल से धौलपुर तक), मगरमच्छ, ऊदबिलाव, कछुओं की छह प्रजातियां और पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। अवैध खनन से दुर्लभ जलचरों व पक्षियों का अस्तित्व खतरे में डाला जा रहा है। यह अभयारण्य भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के तहत संरक्षित हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया कि चंबल किनारे दिनभर बजरी निकालने का काम किया जाता है। कभी माइनिंग तो कभी पुलिस की जीप यहां आती जरूर है, लेकिन इन्हें रोकते नहीं। पुलिस व वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से सारा खेल हो रहा है। वन नाकों के सामने से रोजाना अवैध रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉलियां गुजरती हैं, लेकिन वनकर्मी कोई कार्रवाई नहीं करते।
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चम्बल घडिय़ाल अभयारण्य क्षेत्र करीब 100 किमी क्षेत्र में है। विभाग के पास मात्र 10-12 लोगों का स्टाफ है। ऐसे में इतने बड़े क्षेत्र की निगरानी सम्भव नहीं है। फ्लाइंग भेजकर जेसीबी से रास्तों को अवरुद्ध करवाया जाएगा।
– संजय शर्मा, वन उपसंरक्षक, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व