वहीं जीएसआई द्वारा इसे इको टयूरिज्म की वेबसाइट में स्थान दिया गया है। इस सोसायटी के साइंस जर्नल में इस क्रेटर को अगस्त 2020 में विश्व के संवैधानिक मान्यता प्राप्त क्रेटर के रूप में स्वीकार कर लिया गया। यह भारत के संवैधानिक मान्यता प्राप्त क्रेटरों में तीसरे क्रेटर एवं राजस्थान का पहला संवैधानिक मान्यता प्राप्त क्रेटर घोषित हो गया है। 3.2 किमी व्यास और 200 मीटर ऊंचाई की अंगूठी के आकार यह संरचना रामगढ़ में स्थित है।
1869 में पहली बार सामने आया
नासा और इसरो के जियोग्राफिक अध्ययन के अनुसार, इस खगोल मंडलीय घटना की आयु लगभग 600 करोड़ वर्ष पूर्व मानी गई है। इस क्रेटर की खोज ईस्ट इंडिया कंपनी पर भारत पर साम्राज्य के समय में एक अंग्रेजी वैज्ञानिक डॉ. मलेट द्वारा 1869 में की गई थी। उनकी खोज के बाद लगातार कई देशी विज्ञानियों ने रामगढ़ आकर अपनी अपनी रिसर्च की और इन्टर नेशनल सोसायटी को अपने रिसर्च पर प्रस्तुत किए, लेकिन उन्हें पर्याप्त प्रमाण नहीं मानते हुए इसे संवैधानिक मान्यता नहीं दी गई।
वर्ष 2018 में हुई थी रिसर्च इंटेक बारां चेप्टर के संयोजक जितेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि सितंबर 2013 में उनके द्वारा इस पर एक सर्वे कर रिपोर्ट जीएसआई के वेस्ट जोन के डायरेक्टर एस तिरूवेण्दगम को सौंपी गई। 2018 में इंटेक केंद्रीय कार्यालय के सीनियर जियोलोजिस्ट व जीएसआई के अधिकारियों द्वारा बारां चेप्टर के आह्वान पर रामगढ क्रेटर पर दो दिन तक रिसर्च व इसमें कोबाल्ट, निकल, निकल कोबाल्ट, लौहा जैसी धातुएं प्रमाणिक साक्ष्य बारां चैप्टर को उपलब्ध कराए।
रिसर्च टीम को पांच सदस्यीय टीम ने अपने प्रमाणिक रिपोर्ट रिसर्च के बाद बारां चैप्टर को सौंपी। जिसे चैप्टर द्वारा जीएसआई वेस्टर्न जोन, केंद्रीय कार्यालय नई दिल्ली इंटेक को भेजा गया। इस रिपोर्ट के आधार पर जियोलॉजिस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के केंद्रीय कार्यालय ने इसको भारत सरकार संबंधित मंत्रालय से मान्यता दिलाए जाने के प्रयास किए। इस रिपोर्ट के आधार पर एक ब्रिटिश साइंटिस्ट केक मॉन्टी तथा अन्य वैज्ञानिक वुल्फ जी ने अपना शोध पत्र इन्टरनेशनल सोसायटी को प्रस्तुत किया। जिसमें इंटेक बारां चेप्टर की सर्वे रिपोर्ट को आधार बनाया तथा संवैधानिक मान्यता के लिए आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत किए।