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कोटा

विलासगढ़ की इन राजकुमारियों ने किया था जल जौहर, पद्मावती की तरह इतिहास में नहीं मिली जगह

विलासगढ़ की राजकुमारियों ने भी मुस्लिम अाक्रमणकारियों से बचने के लिए जौहर रचाया था, लेकिन इतिहास में कभी इस जौहर को जगह नहीं मिल सकी।

कोटाNov 22, 2017 / 12:54 pm

​Vineet singh

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4 princesses of Vilas garh did water Jauhar as Padmavati

पद्मावती के जौहर का चर्चा तो इस वक्त पूरे देश में हैं। संजय लीला भंसाली की फिल्म से उठे विवाद के बाद हर कोई मेवाड़ की इस रानी के बलिदान को जानने लगा है। इतिहासकारों ने भी अपने-अपने तरीके से रानी पद्मिनी के जौहर को इतिहास में जगह दी है, लेकिन राजस्थान में कई ऐसे जौहर हैं जिन्हें इतिहासकारों ने दफना दिया। ऐसा ही एक जौहर है विलासगढ़ की राजकुमारियों का।
कोटा से करीब 116 किलोमीटर दूर स्थित है विसालगढ़। बारां जिले की किशनगंज तहसील में परवन की सहायक नदी विलासी के किनारे स्थित विलास में इस राज्य की राजधानी थी। आलीशान मंदिरों के लिए पहचाने जाने वाली इस नगरी के प्रागेतिहासिक काल से लेकर 13 वीं शताब्दी तक अस्तित्व में होने के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन इसके बाद अचानक इस विशाल राज्य का अस्तित्व खत्म हो गया।
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गौड़ वंशीय शासकों का था राज्य

इतिहासकारों के अनुसार खिंची राजवंश की नींव रखे जाने से पहले हाड़ौती के इस इलाके में परमार शासकों का शासन था। इनके अधीन ही विलासगढ़ राज्य पर गौड़ वंशीय ठाकुर शासकों ने विलासगढ़ पर राज्य किया थे। मूलतः ब्राह्मण होने के कारण इनका धर्म के प्रति खासा आकर्षण था। जिसकी वजह से उन्होंने विलासगढ़ में कई विलाश मंदिरों का निर्माण कराया। यहां अब भी कई हिन्दू व जैन मंदिरों के खंडहर मौजूद हैं। जिनका वैभव 8वी और 9वी शताब्दी के दौर में चरम पर था।
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खंडहरों देते हैं समृद्धि की गवाही

विलासगढ़ की समृद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक मंदिरों की नगरी में प्रागेतिहासिक काल से 13वी शताब्दी तक के प्रमाण प्राप्त होते हैं।विलासगढ़ में बने विशाल मंदिरों के 5 हजार से ज्यादा अवशेष अभी भी यहां मौजूद हैं। जिनमें हाथी को अपनी चौंच में दबाकर उड़ते ड्रेगन तक की मूर्तियां विलक्षण और खास हैं। इसके साथ ही क्षीर सागर में विष्णु शयन और भगवान विष्णु के वाहर अवतार की विशाल मूर्तियां राज्य की प्राचीनता की गवाही देती हैं। हाड़ौती में यह इकलौता राज्य है जहां वराह अवतार की पूजा के अवशेष मिले हैं। इसके साथ ही जैन दिगम्बरों और नाग देवता की विशाल प्रतिमाएं भी बेहद खास हैं।
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मुस्लिम आक्रमणकारियों ने किया तबाह

इतिहासकार और जेडीबी कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सुषमा आहुजा बताती हैं कि 11 वीं और 12वीं शताब्दी में विलासगढ़ पर भैंसाशाह नाम के गौड़ राजा का शासन था। राज्य की समृद्धि के किस्से सुनकर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उनकी राजधानी विलासगढ़ पर हमला कर उसे तहस-नहस कर दिया। मंदिरों और गढ़ को पूरी तरह तोड़ दिया गया। इनके 15 हजार से ज्यादा टुकड़े आज भी यहां बिखरे हुए पड़े हैं। जिनमें से हजारों तो अब तक चोरी हो चुके हैं।
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राजकुमारी उदलदे ने किया था जल जौहर

इतिहासकार डॉ. सुषमा अहूजा बताती हैं कि विलासगढ़ पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले का सबसे बड़ा मकसद यहां की अकूत संपत्ति को लूटना था, लेकिन जब उन्होंने विलास की राजकुमारी उदलदे की सुंदरता के बारे में सुना तो वह विस्मित हो कर उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए उतावले हो उठे। भैंसाशाह ने मुस्लिम आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन वह उनके सामने ज्यादा दिनों तक टिक ना सके और एक दिन युद्ध में मारे गए। इसके बाद जब आक्रमणकारियों ने उनकी बेटियों को बंधक बनाने की कोशिश की तो उदलदे और उनकी बहनों ने विलासी नदी में कूंदकर जल जौहर कर लिया।
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जनश्रुतियों में ही बची रह गई है राजकुमारियों की याद

जिस जगह राजकुमारी उदलदे और उनकी बहनों ने नदी में कूंदकर जौहर किया था उस जगह को आज कन्यादह के नाम से जाना जाता है। एक जनश्रुति यह भी है कि अपनी अस्मत की रक्षा के लिए विलासगढ़ की यह चार कन्याएं नदी में जिस जगह कूंदी वहां गहरी खाई बन गई। जिसके बाद इस जगह का नाम कन्यादह पड़ गया। हालांकि इतिहास के पन्नों में विलासगढ़ की इन राजकुमारियों के जल जौहर का कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता।

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