केंद्रीय विद्यालय में पुस्तकोपहार एक परंपरा बन रही है। नए शिक्षण सत्र की शुरुआत में पुस्तकोपहार को अभियान के रूप में चलाया गया। इस दौरान बड़ी कक्षा के बच्चों ने अपनी किताबों को छोटी कक्षा के बच्चों को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया इसमें कक्षा पहली से बारहवी के बच्चों ने बढ़-चढक़र हिस्सा लिया।
प्राइवेट स्कूलों में किताबों के नाम पर मची है लूट
प्राइवेट स्कूलों में फीस, किताबों व यूनिफॉर्म के नाम पर लूट मची है। हर साल एक पाठ इधर-उधर कर नईं किताबें खरीदने अभिभावकों को विवश होना पड़ता है। कोर्स के अतिरिक्त आए दिन नई-नई किताबें खरीदवाकर माता-पिता का ये बोझ बढ़ा रहे हैं। लेकिन केंद्रीय विद्यालय की अनोखी परंपरा के कारण देर सबेर शासन-प्रशासन, जनप्रतिनिधियों की आंखें खुलने की उम्मीद है।नई किताबें खरीदने की नहीं पड़ती जरूरत
केंद्रीय विद्यालय में पुस्तकोपहार के नाम पर अनुपम योजना चला रहे हैं। इसके तहत अगली कक्षा के बच्चे अपनी पुरानी पुस्तकों को पिछली कक्षा के बच्चों के लिए भेंट करते हैं। इसमें प्रत्येक बच्चे बढ़-चढक़र हिस्सा लेते हैं। वहीं पुस्तकें को लाइबेरी में रखवाते हैं, फिर जरूरतमंद बच्चों को वितरण कराते हैं। इस योजना से अधिकांश बच्चों को हर बार नई-नई किताबें खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।अवनी कुमार श्रीवास्तव, प्राचार्य, केंद्रीय विद्यालय बैकुंठपुर