देश भर के शेर जहां जंगलों में आने वाले पर्यटकों और वहां के मूल निवासियों से नहीं उलझते वहीं सुंदरवन के इलाके में एक अनुमान के मुताबिक शेर हर वर्ष इंसानों पर कम से कम सौ हमलेकरते हैं जिनमें से आधे का परिणाम इंसानों की मौत के रूप में सामने आता है। जिनमें से ज्यादातर के अवशेष के रूप में कपड़े और हड्डियां ही मिलती हैं।
ऐसा क्यों यह पूछने पर विशेषज्ञ अलग अलग तर्क रखते हैं। कुछ कहते हैं कि गंगा में बहाए गए शव मैंग्रोव की छोटी छोटी नदियों में बहकर लंबे समय से आ रहे हैं। जिन्हें शेरों ने निश्चित तौर पर चखा है। ऐसे शेर जो मानव मांस चख चुके हैं। उनकी आनुवांशिकी में मानव मांस से परहेज करना हट चुका है। हालांकि इस तर्क को इसलिए स्वीकार करने में परेशानी होती है क्यों कि अब गंगा में अधजले शव फेंकने की परंपरा खत्म हो चुकी है। लेकिन इस तर्क का समर्थन करने वाले कहते हैं कि ठीक है अंतिम संस्कार के बाद अब शव गंगा में भले ही नहीं फेेंके जा रहे हों लेकिन डूबने वाले, दुर्घटनाओं के समय मारे गए और प्राकृतिक आपदा के समय गंगा में डूबे लोगों के शव अभी भी जंगलों में पहुंचते ही रहते हैं।
सुंदरवन के विशेषज्ञ मोनिरुल एच खान ने कहा था कि सुंदरवन के बाघों में आया परिवर्तन पारिस्कीय परिवर्तन, सामुद्रिक जलस्तर में बढ़ोतरी और पानी में बढ़ती सेलिनिटी (लवणीयता) के कारण हो सकती है। वे जोर देकर कहते हैं कि पानी का बदलता स्वाद यहां के शेरों के बदलते व्यवहार के लिए जिम्मेवार हो सकता है।
सुंदरवन में शहद, जलाऊ लकड़ी, मछली केकेड़े व अन्य वनोपज संग्रह के लिए बहुत से लोग जंगलों के भीतर चले जाते हैं। शेर अपने कोर इलाके में मानवीय आवाजाही को बड़ा हस्तक्षेप समझता है। इसलिए वह लोगों को निशाना बनाता है। हालांकि वन विभाग के अधिकारी जंगलों में लोगों के जाने को लगातार नियंत्रित करने में लगे हुए हैं। लेकिन लोगों की रोजी रोटी उन्हें जंगल के राजा की मांद में घुसने के लिए मजबूर करती है जिसका परिणाम हमले के रूप में सामने आता है।