राजस्थान के इस शेर ने सहर्ष यह जिम्मेदारी संभाल ली। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने माओवादियों के छक्के छुड़ा दिए थे। वर्मा के नेतृत्व में ससशधर महतो, सिद्धू सोरेन, लालमोहन टुडू जैसे कई माओवादी मार गिराए गए थे। 25 मार्च 2010 को शीर्ष माओवादी नेता किशनजी भी मुठभेड में जख्मी हुआ था। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद वे राजनीति के शिकार हुए। उन्हें 29 मार्च 2011 को पश्चिम मिदनापुर जिले के पुलिस अधीक्षक पद से हटा दिया गया।
अक्टूबर महीने से जब माओवादियों ने नए सिरे से जंगलमहल (पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया) में खून-खराबा शुरू किया तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को वर्मा की याद आई। उन्होंने वर्मा को माओवादियों से मुकाबले के लिए गठित काउंटर इंसरजेन्सी फोर्स (सीआईएफ) का एसपी (ऑपरेशन) बना कर मैदान में उतारा। वर्मा ने 12 नवम्बर 2011 को पदभार संभाला और एक पखवाड़े से भी कम समय में सरकार को किशनजी जैसे कुख्यात माओवादी का शव तोहफे में दे दिया।
इसके बाद वर्मा को सिलीगुड़ी का कमिश्रर बनाया गया था। वहां से फिर कोलकाता बुला लिया गया था। फिर जब दार्जिलिंग अशांत हुआ तो उन्हें दार्जिलिंग आईजी बना कर भेजा गया था। अब उन्हें राजनीतिक हिंसा की आग में जल रहे बैरकपुर कमिश्ररेट क्षेत्र का जिम्मेदारी सौंपी गई है।