जिला स्तर पर एकजुटता पर जोर- जिला स्तर पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी के लिए दोनों दलों के प्रादेशिक नेता विधानसभा की तर्ज पर कांग्रेस और माकपा के बीच एकजुटता पर जोर दे रहे हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के साथ माकपा के गठबंधन को जमीनीस्तर के कार्यकर्ता सहित आमलोगों ने स्वीकार लिया था। विस चुनाव के बाद हुए विस उपचुनाव में दोनों पार्टियां विपरीत दिशा में चलना शुरू कर दी। लोकसभा चुनाव में कोलकाता सहित उत्तर व दक्षिण बंगाल के जिलों में कांग्रेस और माकपा का सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस अपने प्रभाव वाले जिले मुर्शिदाबाद और मालदह में एक-एक सीटें जीतने में सफल रही जबकि माकपा सहित वाममोर्चा का पूरे राज्य से सफाया हो गया। वर्तमान समय में लोकसभा या राज्यसभा में पश्चिम बंगाल से माकपा का एक भी सांसद नहीं रहा। माकपा प्रदेश नेतृत्व के अनुसार 1964 में माकपा के गठन के बाद से यह पहला मौका है जब संसद में राज्य का एक भी सांसद नहीं है। 2004 में लोकसभा में वामदलों के 36 और राज्यसभा में 16 सांसद रहे। लोकसभा चुनाव में राज्य के कुल 42 संसदीय सीटों में से केवल जादवपुर में माकपा उम्मीदवार विकास रंजन भट्टाचार्य की जमानत बच पाई थी। शेष 41 सीटों पर वाममोर्चा उम्मीदवार अपना जमानत बचाने में विफल रहे। यही स्थिति कांग्रेस की भी रही। करीब 30 से अधिक सीटों पर कांग्रेस का जमानत नहीं बच सका था। इस संदर्भ में लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि लोकसभा चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति ने जमीनीस्तर पर कांग्रेस और माकपा सहित वामदलों के अस्तित्व को समाप्त कर देगा। ऐसे में दोनों दलों को चुनावी गठबंधन नहीं बल्कि दीर्घ मियादी गठबंधन करने की सख्त जरूरत है। वहीं माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य तथा प्रदेश माकपा सचिव डॉ. सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि हाल में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी माकपा कांग्रेस के साथ गठजोड़ के पक्ष में थी पर प्रदेश कांग्रेस नेताओं की ‘जिद’ के कारण बात बनते बनते बिगड़ गई।
लोकसभा चुनाव में किस दल को मिले कितने वोट- तृणमूल कांग्रेस- 43.28 फीसदी भाजपा- 40.25 फीसदी माकपा- 6.28 फीसदी कांग्रेस- 5.61 फीसदी