महेश्वर. रिवर फेस्टिवल के पहले दिन वोकल धु्रपद मैं अपनी आवाज का जादू सुरम्य तट पर भगवान
शिव के भजनों की प्रस्तुति वासिफीउद्दीन डागर ने दी।उन्होंने अपनी प्रस्तुति में भज रे मन विश्वनाथ शिव भगवान की स्तुति की। सर्वप्रथम उन्होंने अलाप पर ओंकार की प्रस्तुति दी। उन्होनें भगवान शिव के डमरु, मां पार्वती की शिव पूजा तांडव की झलक से रुबरु कराया। उन्होंने बताया कि वे संगीत की 40 वीं पीढ़ी से है। उनके पूर्वज बादशाह अकबर के दरबार में भी संगीतज्ञ रहे हैं।उनके दादा नसरुद्दीन खां यशवंत राव होलकर द्वितीय के दरबार में संगीतज्ञ थे।शास्त्रीय संगीत को लेकर उन्होंने पीड़ा जताई कि जो भारत की पहचान है, उसे केवल सरकार ही मदद कर रही है।कारपोरेट जगत वेस्टर्न संगीत पर
ध्यान दे रहा है।उनके साथ पखावज पर श्याम सुंदर शर्मा, तानपुरे पर लॉरेंस वास्त, संतोष कुमार ने प्रस्तुति दी। आयोजन में वाराणसी से पधारे सितार वादक देवदत्त मिश्रा और शिवनाथ मिश्रा ने जुगलबंदी की प्रस्तुति दी।कार्यक्रम में शंकर महादेव देव सेवक सब जागे शिव स्तुति हुई। इसके बाद शंकरा राग, शिवशक्ति
मंत्र , सर्व मांगल्य और कार्यक्रम के अंत में शिव तांडव रिद्म की प्रस्तुति हुई। रिवर फेस्टिवल में शिवाजी राव होलकर, युवराज यशवंत राव होल्कर, नायिरीका होलकर, नगर परिषद अध्यक्ष अमिता हेमंत जैन सहित देशी विदेशी मेहमानों ने हिस्सा लिया।घाट पर हजारों दीपक मां नर्मदा की लहरों में प्रवाहित किए गए। साथ ही किले पर फूलों की रंगोली एवं दीप सज्जा की गई।
आज के गीत 15-20 दिन ही सुने जा रहे संगीत पर चर्चा के दौरान वासिफिउद्दीन डागर ने कहा कि संगीत में वर्तमान के गाने 15-20 दिन ही सुने जा रहे है। श्रोता इसके बाद इन गानों की तरफ ध्यान हीं नहीं देते। इन गीतों के सुर कहा जा रहे हैं, पता ही नहीं चलता। पुराने गीत सदाबहार होते थे। उनमें रागों क?
शक्ति ?? होती थी, जो संगीत दिल को छूता था। आज संगीत डिजिटल हो गया है।
भारतीय संगीत से मिलती है मन को शांति भारतीय संगीत मन को शांति प्रदान करता है। इस शांति को पाने के लिए विदेशी लोग भी संगीत सीखने आ रहे हैं। विदेशी
गुरु भक्ति के लिए समर्पित होकर संगीत सीख रहे हैं। हम आधुनिकता की ओर बढ़ भारतीय संस्कृति को छोड़ते जा रहे है। संगीत को बचाने के लिए शिक्षा में शामिल करना चाहिए। जो बच्चे संगीत से जुड़े होते है उनका दिमाग तेज होता है और उनमें एकाग्रता ज्यादा होती है ।
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