‘खंडवा वाले’ सुनकर खुश हो जाते थे सुरों के बादशाह किशोर कुमार, 5 रुपैया 12 आना गीत में सुनाई असली कहानी
Kishore kumar death anniversary : मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्मे किशोर कुमार को आज देशभर में उनके चाहनेवाले उन्हें नम आंखों से याद कर रहे है। गायकी के करियर में ऊंचा मुकाम पाने के बाद भी महान कलाकार जैसे शब्दों से ज्यादा किशोर कुमार ‘खंडवा वाले’ सुनना ज्यादा पसंद था…
Kishore kumar death anniversary : कई भारतीय भाषाओं में अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाले किशोर कुमार भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके सुर-ओ-साज आज भी लोग बड़े शौक से गुनगुनाते हैं। गायकी के अपने करियर में ऊंचा मुकाम पाने वाले किशोर दा अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहे, अपना घर, अतीत कभी नहीं भूले…आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्हें गायकी का सम्राट, महान कलाकार जैसे शब्दों से ज्यादा किशोर कुमार ‘खंडवा वाले’ सुनना ज्यादा पसंद था।
मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्मा सुरों का ये जादूगर आज ही के दिन 13 अक्टूबर को सन् 1987 हमेशा के लिए शांत हो गया था। महज 58 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले किशोर कुमार की याद में आज भी महफिलें सजेंगी, हुडलई-हुडलई.. जैसे किशोर दा के अनोखे अंदाज से सारी शाम सारा आसमां फिर से गूंजेगा। उनके चाहने वालों की आंखें नम हैं, लेकिन जोश और उत्साह वही है अपने उस्ताद यानी किशोर कुमार जैसा… यहां पढ़ें किशोर दा की लाइफ से जुड़े सुने-अनसुने किस्से…
किशोर कुमार ‘खंडवा वाले’
संगीत की दुनिया में अपनी आवाज, अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले किशोर कुमार भले ही बड़े कलाकार हो गए, मुंबई में ही बस भी गए, लेकिन कभी वो जगह नहीं भूले जहां उन्होंने जन्म लिया, बचपन के दिन गुजारे…। वो अपने घर से, उस गली और शहर से कितना जुड़ाव रखते थे ये इसका अंदाजा इस बात से हो जाएगा कि छोटा-बड़ा कोई भी फंक्शन हो वहां वे गर्व के साथ अपना परिचय देते हुए कहते थे ‘किशोर कुमार ‘खंडवा वाले’।’
बंगाली परिवार में हुआ जन्म
किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम कुंजीलाल था जो पेशे से एक वकील थे। चारों भाइयों में किशोर दा सबसे छोटे थे।
कॉलेज की उधारी
बता दें कि किशोर कुमार ने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। इस दौर का भी एक किस्सा काफी मशहूर है। कहा जाता है कि किशोर दा अक्सर कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खाने का सामान लिया करते थे। देखते-देखते उनकी उधारी करीब 5 रुपए 12 आने तक पहुंच गई।
कैंटीन का मालिक जब उनसे पैसे मांगता तो वे वहीं बैठकर टेबल पर रखे गिलास और चम्मच बजाते हुए ‘5 रुपए 12 आने’ गाने लगते। आप को जानकर हैरानी होगी कि किशोर दा ने कभी इन पलों को नहीं भुलाया। अपने एक गाने के बोलों में उन्होंने इस घटना का जिक्र भी किया है।
2 हजार से ज्यादा गीतों को दी अपनी आवाज
किशोर दा को यूहीं सुरों का बादशाह नहीं कहा जाता, उन्होंने अपने पूरे जीवन में 110 से ज्यादा संगीतकारों के साथ 2678 गाने गाए हैं। आर.डी. बर्मन के साथ किशोर दा ने सबसे ज्यादा संगीत रिकॉर्ड किया है। संगीत के अलावा इन्होंने अभिनय के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया और अपने अभिनय से लोगों का दिल जीत लिया।
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