वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस आठ में से सात विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही तो वहीं लोकसभा चुनाव आते ही भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय 1 लाख 11 हजार से अधिक वोटों के भारी अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी भोलाराम साहू को हरा दिए थे। अभी हाल ही में 2023 में हुए विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो आठ में से पांच में कांग्रेस का कब्जा है तो वहीं राजनांदगांव, कवर्धा और पंडरिया सीट में भाजपा विजयी हुई है। अब लोकसभा में राजनांदगांव सीट में फिर से इतिहास दोहराया जाएगा या फिर कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुयमंत्री भूपेश बघेल इस मिथ्या को तोड़ देंगे। इसका फैसला 4 जून को सामने आएगा। बहरहाल दोनों ही राजनीतिक पार्टी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, क्योंकि दोनों ओर प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र के आठ में से पांच विधानसभा में कांग्रेस विधायक हैं। डोंगरगढ़, डोंगरगांव, मोहला-मानपुर, खुज्जी और खैरागढ़ सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। राजनांदगांव जिले से दो नए जिले कांग्रेस कार्यकाल में ही अस्तित्व में आए हैं। यही कारण है कि कांग्रेस राजनांदगांव संसदीय सीट को जीतने का दम भर रही है और यहां से पूर्व मुयमंत्री भूपेश बघेल को ही प्रत्याशी के रूप में उतारा गया है।
दांव पर लगी प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा राजनांदगांव संसदीय सीट में राजनांदगांव, खैरागढ़, डोंगरगढ़, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला-मानपुर, कवर्धा और पंडरिया शामिल हैं। विधानसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करें तो इनमें से पांच सीटों पर कांग्रेस का राज है और भाजपा तीन सीटों तक सीमित है। कांग्रेस पांच सीटों पर कब्जा होने से कॉन्फिडेंस होकर लोकसभा चुनाव लड़ रही है तो वहीं भाजपा मोदी की गारंटी और पूर्व में आए चुनाव परिणामों को लेकर आश्वस्त होकर मैदान में उतरी है। दोनों के बीच घमासान हो रहा है। इस चुनाव में दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी संतोष पाण्डेय और कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुयमंत्री भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा दांव पर है।
विधानसभा चुनाव में घोषणा-पत्र और चेहरा पत्रिका द्वारा राजनीतिक जानकारों और विशेषज्ञों से इस संबंध चर्चा की गई। इसमें यह समझ आया कि विधानसभा चुनाव में जहां लोकल मुद्दे, स्थानीय समस्याएं और पार्टी की घोषणा पत्र पर फोकस रहता है। साथ ही प्रत्याशी की छवि को देखकर मतदाता अपना वोट करते हैं। वहीं जैसे ही लोकसभा चुनाव की बात आती है तो विचारधारा राष्ट्रीय मुद्दों की ओर केंद्रित हो जाते हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाता भी स्थानीय समस्याओं पर चर्चा नहीं करते। वह तो देश की राजनीति, समसामयिक घटनक्रम, मौजूदा देश के हालात पर चर्चा करते हैं भविष्य को देखते हुए मतदान करते हैं।
वोट शेयरिंग में भी उतार चढ़ाव रहा पिछले तीन पंचवर्षीय में भाजपा-कांग्रेस की वोट शेयरिंग की बात करें तो वर्ष 2009 की लोकसभा चुनाव में भाजपा 52.70 प्रतिशत जनमत मिला था, जबकि कांग्रेस को 38.36 प्रतिशत। वर्ष 2014 में भाजपा को वोट शेयरिंग और बढ़त बनी, जबकि कांग्रेस की घट गए। भाजपा को 54.61 प्रतिशत और कांग्रेस को 34.59 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन वर्ष 2019 में भाजपा के वोट शेयरिंग में थोड़ी गिरावट आयी, जबकि कांग्रेस को बढ़त 8 फीसदी तक बढ़ी थी। भाजपा को 50.68 फीसदी और कांग्रेस को 42.11 प्रतिशत मत मिले। मतलब उतार चढ़ाव बना हुआ है।