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इंजीनियरों का कमाल: देश के दुश्मनों को सबक सिखाने बगैर ड्राइंग-डिजाइन बना दिया बोफोर्स तोप

७५वीं वर्षगांठ पर मिशाल देकर कर्मचारियों से कहा गया हम कुछ भी कर सकते हैं, ओएफके ने बना दिया बोफोर्स का ड्राइविंग बैंड

कटनीFeb 16, 2018 / 11:27 am

raghavendra chaturvedi

Ordinance Factory Katni made Bofors driving bands

Ordinance Factory Katni made Bofors driving bands

कटनी. २९ साल पहले ओएफके में इंजीनियरों ने कमाल किया वह अब मिशाल बन गया है। ओएफके ७५वीं वर्षगांठ के अवसर पर जब कर्मचारी वर्कलोड मांग रहे हैं। ऐसे में कर्मचारियों में आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ ही दक्षता के साथ काम करने के लिए यहां बने ड्राइविंग बैंड का उदाहरण दिया जा रहा है। पूर्व में जीएम रहे पीएल शर्मा ने कर्मचारियों का आत्मविश्वास बढ़ाते हुए कहा कि हम वही ओएफके के कर्मचारी हैं जो बिना ड्राइंग डिजाइन के बोर्फास का ड्राइविंग बैंड बना चुके हैं। हम बताते हैं कि आखिर २९ साल पहले बोफोर्स का ड्राइविंग बैंड कितना कारगर रहा। कारगिल युद्ध के दौरान दूर पहाड़ी में छिपकर बैठे विदेशी सैनिक जब चुन चुनकर हमारे वीर जवानों को निशाना बना रहे थे। उस समय उनके ठिकाने तक बोफोर्स से दागी गए बम ही पहुंचकर ध्वस्त कर रहे थे। हमारी ताकत का अहसास दुश्मन देश को बोफोर्स तोप जब करा रहा था तो उस ताकत के पीछे कहीं न कहीं ऑर्डिनेंश फैक्ट्री कटनी (ओएफके) में बना ड्राइविंग बैंड था। १९९९ में ओएफके के इंजीनियरों को बोफोर्स तोप के लिए सेल का डिजाइन देकर ड्राइविंग बैंड का मटेरियल तो बता दिया गया था, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया था कि ड्राइविंग बैंड का डिजाइन कैसा होगा। जिससे बम दागने के दौरान वह उतनी ही फोर्स के साथ निर्धारित दूरी पर गिरे। ओएफके के इंजीनियरों के सामने चुनौती थी कि बिना डिजाइन ड्राइविंग बैंड कैसे बनाएं। इंजीनियरों के दल ने कड़ी मेहनत की और ऐसा डिजाइन तैयार किया जो दुनिया को भारत की सैन्य शक्ति का लोहा मानने विवश कर दिया।

 

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क्या है ड्राइविंग बैंड
ड्राइविंग बैंड बोफोर्स तोप में बैरल से टच होकर जाता है। बैरल में क्रूज स्पाइरल आकार में होता है। ताकि जब शेल बैरल के अंदर चले तो स्पिन होने से उसकी गति और ज्यादा बढ़े। बैरल में इसी स्पाइल सेप को ड्राइविंग बैंड से पैक किया जाता है। ड्राइविंग बैंड का काम होता है बैरल में ऐसा फिट हो जाए कि सेल जब ट्रेवल करे तो कहीं भी गैस लीक होने से उसकी ताकत कम न हो और बम निर्धारित दूरी पर ही जाकर गिरे।

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चुनौती था सही डिजाइन
ओएफके के महाप्रबंधक वीपी मुंघाटे के अनुसार १९९९ में बोफोर्स से जुड़ी कुछ तकनीक साउथ अफ्रीका से ली गई, तब ड्राइविंग बैंड का डिजाइन नहीं मिला था। ओएफके को सेल का डिजाइन ही मिला था। तब ड्राइविंग बैंड सटीक डायमीटर के साथ बनाना बड़ी चुनौती थी। इंजीनियरों ने इस काम को बखूबी निभाया। बोफोर्स की मारक क्षमता ३१ किलोमीटर से ज्यादा है। इस ताकत के पीछे ड्राइविंग बैंड का महत्वपूर्ण योगदान है जो देशभर में ओएफके में ही बनती है।

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