मन्नत पूरी होने पर फिर आते हैं। मां की कई घंटों साधना कर विजय घंटा और ध्वज चढ़ाते हैं। और निकल जाते हैं। मंदिर के बाहर और अंदर पुलिस का कड़ा पहरा हर समय रहता है। मुखबिर पुलिस को सूचना दे देते हैं कि डकैत आ रहे हैं। पुलिस भी चौकन्नी हो जाती है उसके बाद भी डकैत मंदिर में पूजा-पाठ कर निकल जाते हैं। हजार कोशिश के बाद भी इक्का-दुक्का मामले छोड़ दे तो पुलिस किसी बड़े डकैत को आज तक नहीं पकड़ पाई है।
क्या है मंदिर का इतिहास- कैला देवी मंदिर सवाई माधोपुर के निकट राजस्थान के करौली जिले का प्राचीन मंदिर है। कैला देवी मंदिर में चांदी की चौकी पर स्वर्ण छतरियों के नीचे दो प्रतिमाएं हैं। इनमें एक बाईं ओर उसका मुंह कुछ टेढ़ा है, वो ही कैला मइया है। दाहिनी ओर दूसरी माता चामुंडा देवी की प्रतिमा है। कैला देवी की आठ भुजाएं हैं।
मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है। उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था। इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं यहाँ प्रचलित है। माना जाता है कि भगवान
कृष्ण के पिता वासुदेव और देवकी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का वध कंस ने करना चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है।
इसलिए तिरछा है माता का चेहरा
माना जाता है कि मंदिर में स्थापित मूर्ति पूर्व में नगरकोट में स्थापित थी। मुगल शासकों के मूर्ति तोड़ो अभियान से आशंकित मंदिर के पुजारी योगिराज मूर्ति को मुकुंददास खींची के यहां ले आए। केदार गिरि बाबा की गुफा के निकट रात्रि हो जाने से उन्होंने मूर्ति बैलगाड़ी से उतारकर नीचे रख दी और बाबा से मिलने चले गए। दूसरे दिन सुबह जब योगिराज ने मूर्ति उठाने की चेष्टा की तो वह उस मूर्ति हिला भी नहीं सके।
इसे माता भगवती की इच्छा समझ योगिराज ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया और मूर्ति की सेवा करने की जिम्मेदारी बाबा केदारगिरी को सौंप कर वापस नगरकोट चले गए। माता कैला देवी का एक भक्त दर्शन करने के बाद यह बोलते हुए मंदिर से बाहर गया था कि जल्दी ही लौटकर फिर वापस आउंगा। कहा जाता है कि वह आज तक नहीं आया है। ऐसी मान्यता है कि उसके इंतजार में माता आज भी उधर की ही ओर देख रहीं है जिधर वो गया।