संस्कृति बताता है यहां का कचरा शोध पत्र में बताया गया है कि शहर से निकलने वाला कचरा यहां की संस्कृति भी बताता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जो कचरा निकलता है वह मुख्य रूप से घरों का है। शेष इंडस्ट्री का कचरा होता है जो खतरनाक श्रेणी में होता है। कचरा शहर की क्षेत्रीय गतिविधियां, खानपान, सांस्कृतिक परंपराएं, सोशियो इकोनॉमिक गतिविधियां, मौसमी उतार-चढ़ाव पर भी आधारित होता है। कचरे में 40 फीसदी बायोडिग्रेबल, प्लास्टिक, लेदर, रबर, ग्लास आदि शामिल है। वर्ष 2021 के आंकड़ों के आधार पर 50 रुपये प्रति किचन की दर बताई गई है। इस बात पर ध्यान देना होगा कि शहर का लिट्रेसी रेट 79.65 है और 26 फीसदी आबादी स्लम एरिया में रहती है। वहीं, इसकी औसत कैलोरिफिक वैल्यू 2288 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम है जो बिजली उत्पादन के लिए भी सही है।
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500 टन प्लास्टिक कचरे का रोजाना उत्पादन 50 टन प्लास्टिक कचरे का प्लांट में बनता एमआरएफ 150 टन कचरा होता है रीसाइकिल 200 टन प्लास्टिक कचरा रोजाना नाले-नालियों में जा रहा
100 टन प्लास्टिक कचरा कूड़ा बीनने वाले रोजाना उठा रहे देश में 10वें स्थान पर है कानपुर शोध पत्र के अनुसार देश के सर्वाधिक ठोस अपशिष्ठ पैदा करने वाले 46 शहरों में कानपुर दसवें स्थान पर है। वर्ष 2020 तक के आंकड़ों पर अप्रैल 2022 में प्रकाशित इस शोध पत्र में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि अब मात्रा अधिक हो गई है।